TEJASVI ASTITVA
MULTI-LINGUAL MULTI-DISCIPLINARY RESEARCH JOURNAL
ISSN NO. 2581-9070 ONLINE

पर्यावरण पर करोना का प्रभाव – वि .उमा ज्योति

हिन्दी प्राध्यापिका , एस.के.आर महाविद्यालय,राजमहेन्द्रवरम् , पूरब गोदावरी जिला,आंध्रप्रदेश 

प्रस्तावना :-

                                                                               “प्रकृति अलंकृत करती जन को

                                                                                हर्षित करती हर तन – मन को  

                                                                                 इसको संयम  से अपनाये

                                                                                  राष्ट्र  संपत्ति तभी बच पाये।   ”

 फिलहाल, पर्यावरण प्रदूषण इस तरह है :-

              ना जल पीने लायक ; वायु ना जीने लायक ,

              भूमि भी हो गयी है बन्झर ; कैसा है यह मंझर?

              कान फोड़ाती आवाज़ों का , फैला घातक शोर ;

              उर्वरकों की बीमारी का ; भूमि में है ज़ोर ,

             पानी बिजली की बर्बादी , नित बढ़ती यह आबादी,

             कूड़ेदान बनीं ये नदियाँ ; कलुषित हुई ये पूर्वाईयाँ ,

             जल,वायु और यह भूमि ; कुछ भी स्वच्छ अब रहा नहीं ,

              रोग मिल रहे ऐसे – ऐसे , जिनकी कोई दवा नहीं !

                  मानव की इन भूलों पर आक्रोश के सिवा , कुछ भी नहीं बचा.  कारण क्या है ? मानव ने प्रगति के नाम पर, औद्योगीकरण, शहरीकरण , प्राकृतिक संसाधनों को बेरोक शोषण करके , लालच से पूरे भूमंडल को प्रदूषित कर दिया । अब तो विश्व को कंपित करने वाली महम्‍मारी कोविद – 19 के कारण मनुष्य को चार दीवारों के बीच बंदी बनाने वाली लॉक डाउन दो महीनों से हमारे देश में अमल में रहा,तो प्रगति चक्र रुक गया । अब हम इसका प्रभाव पर्यावरण के किन – किन अंशो पर पड़ा, देख लें तो,

स्वच्छ हवा :- हमारे देश पर प्रभाव देखें तो ,हवा इतनी स्वच्छ बन गई कि पंजाब में जलंधर वासियों को सौ मील दूर में स्थित हिमालय दिख रहे हें   लॉक डाउन के दो सप्ताहों में ही, दिल्ली में वायु – प्रदूषण खतरनाक – स्थाई से संतृप्तिकर स्थाई तक पहुँचा इस स्थिति का एक ही कारण है – उद्योगों और वाहनों से निःसृत विष वायु रुक गये । पंचासी (८५) नगरों में यह भेद स्पष्ट दीख पड़ा और एक प्रधान कारण ,विमान भी रुक जाने के कारण, आसमान गंदगी को छुड़वाकर ,” नीलाकाश ” नाम को सार्थक बना लिया। भारत देश की ही नहीं, दुनियाँ भर में इसी हालत को देख कर, “नासा” शास्त्रज्ञ भौंचक्का हुए । 

जल प्रदूषण पर कोरोना का प्रभाव :- मैली गंगा….स्वच्छ बन गई / भारतीयों के लिए पुनीत सरिता – गंगा है / इस जल को नमस्कार करके पीते हैं, इस में पुण्य स्नान करते हें / ऐसी नदी पेय ही नहीं , नहाने योग्य भी नहीं रह गयी / गंगा – प्रक्षालान के लिए कई आंदोलन हो रहे हें , इस प्रोजेक्ट पर, खर्च किए गए सरकार के हजारों करोड़ रुपये व्यर्थ हो गए। वही कार्यक्रम अब लॉकडाउन की अवधि में,कारखानों के बंद कराने से,और यात्री – गण का हंगामा न रहने से, बस,जल स्वच्छ बना, गंगा ही नहीं, उपनदि यमुना आदि हमारे देश की नदियाँ ही नहीं, संसार भर की सारी सरिताएँ, खोयी हुई स्वच्छता पा रही हैं

पशु – पक्षी आदि जीवराशि पर कोरोना का प्रभाव :-जब मनुष्यों का रव नहीं रहा,पक्षियों का कलरव शुरू हुआ / सड़कों पर कूकते हुए नृत्य करनेवाले मोर – मोरनी के चित्र , आदि “फेसबुक ” में हलचल किए / ‘उडीशा’ के समुद्रतट में प्रफुल्लता से खेलनेवाले कछुए , जापानी सड़कों पर सैर मारनेवाले हिरण , टेलअवीव हवाई अड्डे में धीमी गति में टहलने वाला बतख – परिवार – ऐसे कई वीडियो सामाजिक माध्यमों में बहुत शेयर हुए  अर्थात् मनुष्यों का हस्तक्षेप न हों तो ,प्रकृति कितने सहज – सौंदर्य से सुशोभित होती ! ?

भू प्रदूषण पर कोरोना का प्रभाव  :-  भूमि अब शांत रखी / कहीं भी भवन – निर्माण नहीं हैं ,क्वारी से विस्फोट नहीं हें / इन सब कोलाहलों से भूमाता का दम घुटता था / अब तो , लॉकडाउन में वह भी कुछ शांत हुई हें / ‘ यामस लेकाक ’ जैसे भू – वैज्ञानिक भूमि पर लॉकडाउन के प्रभाव पर शोध किया और विविध देशों की ‘सीस्मिक ग्राफ’ दिखाकर कहा कि “ बहुत सूक्ष्म भू – प्रकंपन भी अब पहचाने जा रहे हें। फाइबर आप्टिक नेटवर्क की मदद से दुनिया के सैकडों प्रांतों से समाचार संग्रह कर सकते हैं । प्राकृतिक विपत्तियों के संदर्भों में यह समाचार , बहुत उपयोगी होता है । 

ध्वनि प्रदूषण पर कोरोना का प्रभाव :-  ‘ प्रदूषण नियंत्रण मंडल ’ के स्तर पर, ध्वनि प्रदूषण औद्योगिक प्रांतों में ६५, आवास प्रांतों में ५५ ‘डेसिबल’ की सीमा से बाहर नहीं जाना है। बल्कि यहाँ के सिकंदराबाद में “पारडाइज चौरस्ता ” ७९ डेसिबल्स से , देश में ही ध्वनि प्रदूषण में प्रथम स्थान में है । 

               “ बोस्टन ” यूनिवर्सिटी में ‘ ध्वनि प्रदूषण ’ पर शोध कार्य करने वाली एरिका वाकर ने कहा कि मानसिक तनाव ,रक्त चाप , हृदय रोग जैसी समस्याओं से ग्रस्त मरीजों को ध्वनि प्रदूषण बहुत समस्यात्मक रहता था , यह कोरोना लॉकडाउन परिणाम उन पर सानुकूल प्रभाव दिखाता , मनुष्यों पर ही नहीं, क्रूइज़् जहाजी यात्रा के दौरान ,भूमि से कई गुना अधिक ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव समुद्र के जीवों पर पड़कर ,वे भी जहाज की ध्वनि से तनावग्रस्त हो रहे हैं । फिल हाल , ये सब रुक गये, अतः शांत मुद्रा में समुद्र और ताज़ा हवा सूँघते हुए , अंदर के जीव – दोनों प्रफुल्लित हो रहे हैं । 

अनसुनी पक्षियों की चहक :- ‘ऊहान’ प्रांतवासी रेबेका फान्कस ने फिलहाल जो ट्वीट्स की , वे सारी ,पक्षियों के बारे में ही इस तरह की – ” कभी भी इस शहर में पक्षी को देखा नहीं । लेकिन सत्ताईसवीं मंजिले में स्थित हमारे बरामदे के दीवार पर पक्षी बैठ , इतने ज़ोर से चहचहाते हें कि मैं भौंचक्का हो गई”। इसी तरह ,शिलाज ईंधन का विनियोग आदि सब काम रुक गये , कर्बन उद् गार भी कम हो गये । ‘कोरोना’ के इन प्रभावों पर ही मैंने इसलिए प्रकाश डाला कि ‘कोरोना ‘ वायरस  सिर्फ मानव जाति का ही तबाह करती , लेकिन पर्यावरण प्रदूषण समस्त प्राणियों के लिए प्राणांतक है,जैसा अब तक हमने पशु – पक्षी – समुद्र जीवों की समस्या देखी है । वायु , जल, मृदा, ध्वनि प्रदूषण सांप्रदायिक हैं तो, रेडियोधर्मी , प्रकाश प्रदूषण आदि अति आधुनिक माने जाते हैं । डाँ मेहता नरेन्द्र सिंह अपनी कविता बेलपत्र में कहते हैं –

”   धूप , हवा , पानी पर टिकीई है जिंदगानी ;

    इसे प्रदूषित करने की मत कर नादानी ;

   अगर किये नादानी,जीना मुश्किल होगा ,

   और बिना तड़पे,मरना भी मुश्किल होगा। “

यह सच निकला ,फिर भी हम आँख मूंदकर रहे ।  विश्व के प्रथम पर्यावरण – प्रेमी “बापू”के अनुसार ,”प्रकृति सबकी जरूरतें पूर्ति करने पर भी ,हमने लालच से इसको बिगाडा “ । भारत देश में तो पर्यावरण परिरक्षण के लिए संविधान में अनेक विधि-नियमों का प्रस्ताव है, और टेगोर ,गाँधी ,तिलक आदि महान् व्यक्तियों ने पर्यावरण के प्रति हमारे कर्तव्य को सुझाया । 

निष्कर्ष :- अंततः मैं यह कहना चाहती हूँ कि एक जमाना था जब यह सारा संसार प्रकृति की अद्भुत शोभा से विराजमान था । जैसे – जैसे सभ्यता बढती गई, वैसे – वैसे मनुष्यों में भोग – विलास की प्रवृत्ति भी बढती गई ।  वर्ष 2050 में तो,पृथ्वी पर कोई प्राणी दिखाई नहीं देगा और यही नहीं,कुछ ही मिनटों में,उनके सारे शरीर में छाले पड़ जाते हैं और जलन लगेगी ,क्यों की भूमि के ऊपर ‘ ओजोन ‘ की परत के पूर्णतः निकल जाने से पृथ्वी पर गरमी बढ़ जाएगी । कोरोना महम्मारी की तरह महा प्रलय क्या हम फिर से चाहते हैं ? नहीं है न ? कोविद 19 वायरस ने तीस सालों के पहले ही,एक सकारात्मक प्रभाव को दर्शाया । देखिए , सादगी पूर्ण जीवन शैली अब आदत हुई , इस सिलसिले में,पर्यावरण संतुलन के प्रति नई चेतना जागृत हुई । आज ,मनुष्य पण्य (व्यापार) भूमियों  में नहीं,भारत देश जैसे पुण्य (पवित्र) भूमि में जीवन यापन करने पर,हमें गर्वित होना चाहिए । हम इस संकल्प से कार्य करे ,ताकि ‘प्रकृति को सुरक्षा मिल सकें और आनेवाली पीढी सुखमय जीवन प्राप्त कर सकें’ । समूचे विश्व में,पर्यावरण एवं सरकारी विकास नीतियों में संतुलन लाने के लिए सघन एवं प्रेरणात्मक लोक – जागरण अभियान का सृजन करना होगा । 

 

 


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