TEJASVI ASTITVA
MULTI-LINGUAL MULTI-DISCIPLINARY RESEARCH JOURNAL
ISSN NO. 2581-9070 ONLINE

शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी-डॉ. स्नेहलता

शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी

डॉ. स्नेहलता

प्राचार्य

नानकराम भगवानदास साइंस कॉलेज,

तेलंगाना, हैदराबाद                     

महात्मा गांधी के शब्दों में “स्त्री पुरुष की गुलाम नहीं, सहधर्मिनी अंधार्गिणी या मित्र है।”

हमारे देश में नारी को देवी, अबला, श्रद्धा और पूज्या जैसे नामों से संबोधित करने की परंपरा अत्यंत पुराने समय से चली आ रही है। नारी के लिए इस प्रकार के संबोधन का प्रयोग करके उसे पूजा की वस्तु बना दिया या फिर उसे अबला कहकर संपत्ति बना दिया। उसका एक रूप और भी है जिसका स्मरण मात्र से शक्ति का संचार होता है वह है शक्ति का जिसको हमारा पुरुष प्रधान समाज अपनी हीन मानसिकता के कारण उजागर नहीं होने देता। यही कारण है कि हमारे सामने एक प्रश्न बार-बार उठता है कि आखिर नारी का समाज के या राष्ट्र के निर्माण में क्या योगदान है? जो नारी इस संसार की जन्मदात्री है, मनुष्य की प्रथम गुरु है उस पर प्रश्न चिह्न लगाना कहा तक सही है। मेरा प्रश्न संसार के उन पुरुष समुदाय से है जो नारी माँ के रूप में समाज निर्माण और राष्ट्र निर्माण में सहायक है या नहीं? जो बहन के रूप में पुरुष को सदा ही अपना स्नेह प्रदान करना क्या समाज निर्माण में सहायक नहीं है? पत्नी के रूप में संपूर्ण गृहस्थी की देखभाल करना और पूरे परिवार का संचालन क्या कम महत्वपूर्ण काम है। वर्तमान में तो नारी पुरुषों के कंधे से कंधा मिलकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपना कौशल दिखा रही हैं। कल्पना चावला जैसी महिला ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में नाम रोशन किया।

जिस देश में इंदिरा गांधी जैसी महिला प्रधानमंत्री हुई, प्रतिभा देवी सिंह पाटिल जैसी नारी जिस देश में राष्ट्रपति बनी क्या उस देश में नारी के योगदान पर प्रश्न उठने चाहिए? भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में ऐसा कोई देश नहीं जहाँ नारी के मजबूत कदम न पड़े हो।

भारत का इतिहास उठाकर देखने से पता चलेगा कि नारी प्राचीन काल से ही राष्ट्र निर्माण में सहायक रही हैं और आज भी सहायक है। भविष्य में भी रहेगी। वैदिक काल में नारी का स्थान बहुत ही सम्मान जनक रहा है। हमारा अखंड भारत विदुशी नारियों के लिए जाना जाता है जिन्होंने राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। जिनमें गार्गी, कपिला, अरुंधति, मदालसा, मैत्रेयी आदि। भारतीय जन मानस में धार्मिक अनुष्ठान बिना स्त्री के पूर्ण नहीं होता क्योंकि वह पुरुष की अंधार्ग है। प्राचीन काल में विद्याध्ययन एवं धार्मिक कृत्यों में ही नहीं रणक्षेत्र में भी अपना कौशलल दिखाया कररती थी। वह परिचर्चाओं में पुरुषों को भरी सभा में चुनौतियाँ दिया करती थी। उदाहरण गार्गी ने राजा जनक की भरी सभा में ऋषि याज्ञवल्क को चुनौती दी थी। युद्ध के समय राजा दशरथ की सारथी का काम करने वाली पत्नी कैकय रथचक्र का कील निकल जाने पर उंगली से कील को थोक कर रथ को विमुख न होने देने का क्या राष्ट्र सेवा नहीं। सुलतान, लक्ष्मीबाई, जीजा बाई, अहिल्याबाई जैसी विरांगना का उदय हुआ था जिन्होंने पुरुष प्रधान समाज को चुनौती दी थी र नारीत्व का परचम लहराया था। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में श्रीमती ऐनी बेसेंट, सरोजनी नायडू, विजय लक्ष्मी पंडित, आजाद हिंदी फौज की कैप्टन लक्ष्मी सहगल और बेगम हजरत महल जैसी नारियों ने पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रही। सारे संसार की बात की जाय तो ऐसा कोई राष्ट्र नहीं जिसके निर्माम में नारी का योगदान न हो।

नारी के प्रति भारतीय समाज में दोयम दर्जेका रवैया रहा है। जो नारी वैदिक काल में शीर्ष पर थी, उसकी स्थिति मध्य काल तक दास जैसी हो गयी, स्वतंत्रता के पश्चात कुछ सुधार अवश्य हुआ है जो बात किसी पुरुष की देन नहीं वह भी स्वयं नारी की पहल है। देश में जहाँ एक ओर स्त्री5 को अबला बताकर उसे रूढ़ियों में जकड़ा जाता है। राजनैतिक क्षेत्र में लैंगिग विषमता प्रत्यक्ष दिखाई देती है। जहाँ राजनीति में स्त्री केवल 5 प्रतिशत दिखाई देती है। यही कारण है कि महिला आरक्षण विधेयक बिल लागू नहीं हो पाया है। इसके तहत लोक सभा एवं राज्य सभा विधान सभा में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए चक्रानुक्रम पद्धति का प्रावधान किया गया है।

जब तक राजनाति में महिलाओं की भागीदारी नहीं बढ़ेगी तब तक उसका सशक्तिकरण नहीं होगा और देश की तरक्की भी नहीं होगी। आधुनिक काल में समाज सुधारकों ने नारी की स्थिति को संवारने का अथक प्रयास किया जिसमें बाल विवाह वरोध, विधवा विवाह, बहु पत्नीत्व, बाल विवाह एवं दहेज प्रथा के लिए खुल कर विरोध हुआ, नियम व कानून बनाए गए- परंतु भारत में नियम तोड़ने के लिए बनाए जाते हैं। नारी शिक्षा के लिए ठोस कदम उठाए गए स्वामी विवेकानंद ने कहा- “जिस देश में नारी का सम्मान न हो उस देश की उन्नति नहीं हो सकती।” समाज सुधारकों का कहना है था कि “जब तक स्वयं नारी अपने हितों की रक्षा के लिए आगे नहीं आयेगी, तब तक नारी जागृति की बात को समर्थन नहीं मिलेगा।”

आधुनिक स्त्री रूढ़ियों से जकड़ी स्त्री से अधिक सतर्क लगती है उसमें जिम्मेदारी की शक्ति भी है उसमें कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति है वह परिस्थितियों से लड़ने के लिए चिंतन करती है। अब वह निराश्रित, विवश, संघर्षरत, दायित्व के प्रति सजग दिखलाई देती है। परंतु मध्यम वर्गीय तथा निम्नवर्गीय नारी आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए पति का भार आधा वहन कर परिस्थितियों से समझौता कर नौकरी करत है लेकिन उच्चवर्गीय नारी शिक्षिता नारी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए नाम कमाने के लिए नौकरी करती है। घर की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नौकरी करने वाली नारियों के लिए नौकरी एक मजबूरी है वे उसे चाह कर भी नहीं छोड़ सकती है। वहीं समाज में एक वर्ग ऐसा भी है तलाकशुदा नारियों का जो अपना तथा संतान का निर्वाह करने के लिए नौकरी का चयन करती है लेकिन सामाजिकता के कठोर प्रतिबंध कब उसकी नौकरी छुड़वा कर उसका आत्म सुखछीन कर, उसे छटपटाते छोड़ दे कहा नहीं जा सकता। वही हम देखते हैं कि कार्यरत नारी को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता। अपने कार्यक्षेत्र में सहकर्मियों का दबाव और घर में दबाव भी सहन करना है। आज नारी को दो और से दबाव सहन करना पड़ता है। ये उसकी हठधर्मिता कहे या कुछ और अब वो उसे छोड़ना भी नहीं चाहती।

सरकार के द्वारा समय पर कदम उठाए गए भारत में महिला को सशक्त बनाने का प्रयास बराबर जारी है। संविधान के अनुच्छेद 14,15 (3) के, 16 (2) 23, 39(क), (घ) (ङ), 42

के अंतर्गत महिला अधिकारों कों विविध स्तर पर संरक्षण प्रदान किया गया है। इसके अतिरिक्त 73, 74 के संविधान स्थानीय निकायों में उनके लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। अन्य पहलुओं के तहत अनैतिक व्यापार निरोधक अधिनियम, 1959 प्रसूति अधिनियम, समान पारिश्रमिक अधिनियम…….. विरोध 1987, दहेज निरोधक कानून 1961, घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा का नियम 2005 उत्पीड़न, कानून 2012, इस वर्ष से निर्भया कोष की स्थापना की गई, बेटी बचाओ अभियान, बालिका विकास योजना। जैसे अबला जननी सुरक्षा योजना, लाडली योजना, बेटी-बचाओ बेटी पढ़ाओ, तेजस्वीनी योजनाओं का सफल संचालन हो रहा है।

सरकार के प्रयास तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक धरातल पर पुरुष मानसिकता में बदलाव नहीं आ सकता। आज हम देखते हैं कि घटता लिंग अनुपात पंजाब हरियाणा में प्रत्येक 1000 पुरुषों पर 927 या 930 महिलाएँ हैं।

बालिका भ्रूण हत्या, दहेज उत्पीड़न, बधुआ मजदूरी, बाल तस्करी जैसी न जाने कितनी कुरीतियाँ हमारे देश के सामने एक विकट समस्या बनी हुई है।

वर्तमान समय में जन-जन तक यह संदेश पहुँचाने की आवश्यकता है कि महिला सशक्तिकीरण देश के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता बन चुका है। “आज महिलाओं को पुरुषों के बराबर वैधानिक या न्यायिक, राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व मानसिक क्षेत्रों में उनके परिवार समुदाय, समाज एवं राष्ट्र की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में निर्णय लेने की स्वायत्तता प्रदान करने की आवश्यकता है।” नारी को सशक्त बनाए बगैर मानवता को सशक्त नहीं बनाया जा सकता है। संवेदना, करुणा, ममत्व, स्नेह, वात्सल्य, सहनशीलता, विनम्रता आदि गुण महिला के लिए आभरण (आभूषण) है जिससे वह मानवता को निखार और संवार सकती है और सशक्त बना सकती है। इसलिए जरूरी है कि हर क्षेत्र में नारी का सम्मान हो एवं उसकी पर्याप्त हिस्सेदारी हो। उसे साक्षर बनाया जाए, हर क्षेत्र में उसको नेतृत्व प्रदान कर प्रोत्साहित कर उसे उच्च पद पर प्रतिष्ठित कर सम्मान की अधिकारिणी बनाया जाए। शोषण, हिंसा का अंत हो उसे हर पहलू पर सुरक्षा एवं विकास की अनेकानेक प्रक्रियाओं में सम्मिलित किया जाए।

हर देश या राष्ट्र को चाहिए कि जो प्रयास सरकार द्वारा किए जा रहे है, उन पर नारी की अपनी छाप भी पड़ जाय तभी तो वो अपना रंग दिखायेंगे। जब नारी खुद अपने अधिकार के संदर्भ में जाकरूक हो, तभी वो सशक्त बन पायेगी।

सही अर्थों में देखा जाय तो नारी जागरण काल साहित्य में जिसे स्त्री विमर्स का नाम दिया गया है में भी नारी की समस्याओं का अंत नहीं हुआ है जब उसके सम्मुख हजारों समस्याएँ पिशाच के रूप में मुँह बाये खड़ी हुई फिर भी नारी अपनी अस्मिता एवं अस्तित्व को बेहतरीकरण हेतु सक्रियता के साथ आवाज उठती रही है। जिसके अंतर्गत पर्दा प्रथा, विधवा विवाह, तीन तलाक, हलाला व अन्य इसकी बानगी है। आज समूचा भारत हर संभव तरीके से समाज की सभी बहन बेटियों की हिफाजत चाहता है। एक कदम आगे बढ़कर भारत सरकार ने सन् 2001 को महिला सशक्तीकरण वर्ष घोषित किया था और सशक्तीकरण की राष्ट्रीय नीति भी सन् 2001 में ही पारित की थी।

अब हम बात करेंगे ऐतिहासिक स्वर्णाक्षरो में लिखी जाने वाली नारियों के बारे में जिनमें सर्वप्रथम-

  1. आजाद भारत में सरोजनी नायडू संयुक्त प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल बनी थी।
  2. जून को बाम्बेई जापान की 16 मई, 1975 में पहली महिला पर्वतारोही
  3. सलिना विलयन- टेनिस खिलाड़ी जिसने सबसे ज्यादा पदक प्राप्त कर रपहले स्थान की अधिकारिणी।
  4. सावित्री बाई फूले- पहली अध्यापिका जिसने अपने पति के सहयोग से बालिकाओं के लिए 18 स्कूलों की स्थापना की।
  5. सन् 1951 में डक्कन एयरवेज की प्रेम माथुर प्रथम भारतीय महिला व्यावसायिक पायलट बनी।
  6. सन् 1959 में अन्ना चाण्डी केरल की उच्च न्यायालय की पहली जज बनी।
  7. सन् 1963 में सुचेता कृपलानी पहली महिला मुख्यमंत्री बनी।
  8. सन् 1966 में कमलादेवी चट्टोपाध्याय को समुदाय नेतृत्व के लिए रेमन मैग्सेसे अवार्ड दिया गया।
  9. सन् 1966 में इंदिरा गांधी भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी।
  • सन् 1972 में किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा में भर्ती होने वाली पहली महिला बनी।
  • वर्ष 1979 में मदर टेरिसा नोबल शांति पुरस्कार पाने वाली पहली महिला थी।
  • साल 1997 में कल्पना चावला पहली महिला अंतरिक्ष यात्री बनी।
  • वर्ष 2007 में प्रतिभा देवी सिंह पाटिल प्रथम महिला राष्ट्रपति बनी।
  • साल 2009 में मीरा कुमार लोक सभा की पहली महिला अध्यक्ष बनी।
  • साल 2017 में निर्मला सीतारमन पहली पूर्वकालिक महिला रक्षामंत्री बनी।
  • चंदा कोचर पहली कार्यकारी अधिकारी और आईसीआईसीआई बैठक की।
  1. रोशनी नादर मलहोत्रा- पहली तथा कार्यकारी निर्देशक बनी।
  • वर्ष 2017 में मानुषी छिल्लर मिस वर्ड बनी।
  • स्वयं मैं डॉ. स्नेहलता शर्मा- नानकराम भगवानदास साइंस कॉलेज की प्रथम प्राचार्या बनी (यह कॉलेज तेलंगाना प्रांत, हैदराबाद का प्रथम कॉलेज है जो सन् 1954 से पुराने शहर की शान है।)

अंत में आजाद भारत में महिलाएँ दिन प्रतिदिन अपनी लगन मेहनत एवं सराहनी कार्यों द्वारा राष्ट्रीय पटल पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब रही है। आज के इस दौर में महिलाएँ नए भारत के आगाज की अहम कड़ी दिख रही है। लम्बा अरसा हुआ अथक परिश्रम द्वारा भारतीय महिलाएँ समूचे विश्व में अपनी पद्छाप छोड़ रही हैं। शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं ने निश्चित रूप से आगामी स्वर्णिम भारत की नींव को और मजबूत करने का हर संभव प्रयास किया है। आज वह घर तथा कार्यक्षेत्र दोनों को कुशल कारीगर की तरह निभा रही है। इसलिए केवल इतना ही कहना चाहूँगी

मुझे कमजोर समझने की भूल न करना

वरना नारी से चंडी बनने में देर नहीं

 

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