TEJASVI ASTITVA
MULTI-LINGUAL MULTI-DISCIPLINARY RESEARCH JOURNAL
ISSN NO. 2581-9070 ONLINE

स्त्री मुक्ति की दिशा में सुदूरदरर्शी स्त्री साहित्यकार -डॉ .सुधा कर्री

स्त्री मुक्ति की दिशा में सुदूरदरर्शी स्त्री साहित्यकार

Dr.KARRI SUDHA,

SR.ASST. PROFESSOR, DEPARTMENT OF HINDI,

VISAKHA GOVT. DEGREE COLLEGE FOR WOMEN,

VISAKHAPATNAM, ANDHRAPRADESH, INDIA

             

                       “इस विनीलाकाश में आधा हिस्सा तू और आधा मैं” मावो महाशय की ये पंक्तियॉं सुदूरदरर्शी समसामयिक स्त्री साहित्यकार आत्मसात् कर लिए हैं, ऐसा कहने में अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि नारी समाज का आधा हिस्सा ही है । उसके अस्तितव के बिना समाज की कल्पना तक ही नहीं किया जा सकता । वह सामाजिक व्यवस्था का पूरक तत्व है । यही भावना रूढ़िगत व्यवस्था के विरूद्ध उनकी आवाज की नींव है । अति उपेक्षित, अत्यंत पिछडी हुई महिलाओं का उद्धार इन महिला साहित्यकारों का लक्ष्य साबित होता हे। शोषित नारी को उत्पीडन से मुक्त कराने केलिए तथा मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए कई महिला साहित्यकार आजीवन प्रतिबद्ध कार्यरत हेैं। वे अपनी रचनाओं के माध्यम से नारी मुक्ति की आकांक्षा को प्रकट की । महादेवी वर्मा, सुभद्राकुमारी चोहान, मृदुला गर्ग, मेत्रेयीपुष्पा, कृष्णा सोबती, प्रभाखेतान, मृणाल पांडे, चित्रामुद्गल आदि साहित्यकार इस संदर्भ में महत्वपूर्ण् रूप से उल्लेखनीय हैं। ये साहित्कार नारी अस्मिता से संबंधित कई प्रश्नों का समाधान निकालने का भरपूर प्रयास किये हैं।  सामाजिक रूढिगत मान्यताएँ रीति -रिवाज, अंधविश्वास आदि विद्रूपताओं के विरूद्ध अपनी चेतावनी दिये हैं । इन सांकलियों से मुक्त करने के अथक प्रयास में ये कवइत्री अपनी कलम चला दी । समकालीन नारी जीवन को प्रतिबिंबित करते हुए कवयित्री ‘विद्या भंडारी‘ अपनी संवेदना को यों अभिव्यक्त करती हैं :

‘‘नारी गमले का एक पौधा है/

जिसे नहीं मिलता खुला आकाश/

जिस फैलना है/

दीवारों के भीतर ।”1

                   ये कवइत्रियॉं अपनी संवेदनाओं तथा निजी अनुभवों के माध्यम से सामाजिक विसंगतियॉं एवं विद्रूपताओं को भी महसूस किया, जो उनकी कृतियों को एक सृजनातमक रूप दिया । इनकी मान्यता है कि आज भी नारी पारंपरिक संस्कारों में बंधी है । नारी चेतना का मिशाल रूप इनकी कविताओं में मिलता है । कभी-कभी स्त्री का जीवन इतना दुर्बर हो जाता है कि :

‘‘जीना सचमुच मेरे लिए/

अंगारों पर चलना हो गया है/

हॅंसती मुस्कराती हुई मैं /

अपनी ही निगाहों में दयनीय हो जाती हॅूं ।”2

                  युग-युगों से नारी किस प्रकार उत्पीडित है इसका सजीव रूप निम्न कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है ।   प्रस्तुत समाज में नारी को घर-बाहर दोनों कार्यों को संभालना पडता है । सुबह से शाम तक दोनों कार्यों को संभालने में ही उसका समय बीतकट ऐसीस्थिति में वह अपने बारे में सोचने का समय ही नहीं है। उसे सुबह ही उठकर बच्चों को परिवार को संभाल कर ऑफिस जाना पडता है ।

‘‘उषा की सतरंगी/

सपनों की दुनिया से उठकर/

साधती है स्वर रसोईघर में/

सज उठता खाने की मेज पर/

बाद्य वृन्द से वे/

हॅंसते-बोलते हैं/

फिर, दुरागत ध्वनि आकर्षण से बंध/

स्कूल, ऑफिस चले जाने/

और वह /

आधुनिक गीत की अंतिम कडी-सी/

पर्स ठीक करती/

बाहर की दुनिया देखती ।”3

                   समसामयिक समाज में नारी कई समस्याओं का सामना कर रही है । समस्त स्त्री जाति एकत्रित होकर इन बंधनों के विरूद्ध विदो्रह करेगी तो इस समस्या का समाधान मिल जाएगा । ‘‘एकता में बल है‘‘ इसी सिंद्धांत को लेकर रजनी तिलक कहती हैं कि अगर सब लोग मिलकर आगे बढें तो नारी की मुक्ति होगी ।

‘‘मेरा दुःख, दुःख नहीं /

आशाओं का तूफान है/

मेरे ऑंसू, ऑंसू नहीं अंगार हैं/

जंग का पैगाम है/

मैं इकाई नहीं/

करोडों पदचाप हॅूं,/

मूक नहीं मैं/

आधी दुनिया की आवाज हॅूं/

नवयुग की सूत्रपात हॅूं ।”4

                  इनकी कविताओं में अधिकरों की मॉंग अत्यंत प्रखर होकर उभरती है । सामाजिक पिछडेपन से बाहर निकालकर आगे बढ़ाने तथा रूढिगत मान्यताओं तथा सामाजिक बंधनों से मुक्त करने के प्रयास में स्त्री शिक्षा को अधिक महत्व दिये । अत्याचारों से ग्रसित नारियों की स्थिति को सुधारने की दिशा में सरकार कानून को अमल में लाने की निरंतर प्रयास करते रहे । नारी की दयनीय, हीन स्थिति को उजागर करके समाज में बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं । नारी मुक्ति की कामना करती हुई अनामिका कहती है कि

‘‘खिडकियॉं खोल दी है /

कि सूरज आ सके अंदर /

और मेरी कोख से /

जन्म ले ले एक नया दिन /

/ सूरज आ गया है मेरे कमरे में/

अंधेरे मेरे पलंग के नीचे छिपते-छिपते/

पकडा गया है/

और धक्के लगाकर बाहर कर दिया गया है उसे /

धूप से तार-तार हो गया है वह ।”

              रूढिगत परंपराओं तथा मान्यताओं के विरूद्ध अपनी आवाज उठायी हैं।  सामाजिक जीवन में नारी को सहभागी बनाने की प्रेरणा देते हुए साथ में सामाजिक विषमताओं का अंत कर समता पर आधारित नव्य समाज की रचना का आदर्श आत्मसात् करने लगे । ये नारी अस्तित्व की रक्षा में प्रयासरत हैं । नारी की स्थिति को केंद्र बनाकर इन्होंने रचनाएँ की । नारी की आत्मनिर्भरता, स्वावलंबन, गौरव, सम्मान आदि केलिए उनका प्रयास है। इनकी मान्यता है कि नारी की स्थिति को सुधारने में समाज से भी ज्यादा परिवार का दायित्व होता है । इस प्रकार हिन्दी महिला साहित्यकार अपने साहित्य के माध्यम से नारी को मुक्ति की दिशा में प्रेरणा दी हैं । महादेवी वर्मा के श्रुंखला की कडियॉं में – ‘‘भारतीय नारी जिस दिन अपने संपूर्ण प्राणवेग से जाग सके उस दिन उसकी गति को रोकना किसी केलिए संभव नहीं । उसके अधिकारों के बारे में यह बात सत्य है कि वे भिक्षा वृत्ति से न मिले हैं और न मिलेंगे, क्योंकि उनकी स्थिति आदान प्रदान योग्य वस्तुओं से भिन्न है । नारी चेतना को एक विशाल धरातल पर प्रस्तुत किये हैं।

1.‘‘बारिश थम चुकी है‘‘ विद्या भंडारी 1989 पृष्ट संख्या : 9
2. अपने खिलापफ : स्नेहमयी चौधरी : पृष्ट संख्या : 22
3. स्त्री का एक गीत : सुकीर्ति गुप्ता : अभिधा : फरवरी 2000 : पृष्ट संख्या : 41
4. साहित्य 99 पृष्ट संख्या : 285

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