TEJASVI ASTITVA
MULTI-LINGUAL MULTI-DISCIPLINARY RESEARCH JOURNAL
ISSN NO. 2581-9070 ONLINE

‘वृक्षों की महानता’

वृक्षों की महानता

समकालीन हिन्दी और तेलुगु कविता के विशेष संदर्भ में

डॉ. कर्री सुधा 
संपादक
तेजस्वी अस्तित्व एवं
सहायक प्रोफेसर
विशाखा राजकीय डिग्री एवं पी. जी. महिला महाविद्यालय
विशाखापटनम, आंध्र प्रदेश
धरती माॅं के शरीर को हरित हारों से सजाकर उसकी सुंदरता को और भी शोभायमान करने का सुनहरे सपने की कल्पना समकालीन कवि कर रहे हैं । काल्पनिक जगत में हमेशा विहार करनेवाले कवि अब यथार्थ के धरातल को भी सपनों की दुनिया की तरह बनाने के प्रयास में है। प्राचीन प्राकृतिक वैभव को वापस लाने का यज्ञ शुरू किया है। इसमें अपने साथ सब को जोडने का प्रयास कर रहे हेैं। भाषा अनेक हों फिर भी भाव एक है। भारतीय संस्कृति की गरिमा की संस्थापना का पुनः प्रयास किया जा रहा है। इस महायज्ञ में हमसब को शामिल होना हेै। प्रकृति एवं पर्यावरण का संरक्षण हमको अर्वाचीन साहित्य से मिलता है। हमारी संस्कृति वृक्षों की महानता को धर्म के माध्यम से साधारण जनता तक पहुँचा दिया। भारतीयों के नस-नस में पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में श्रद्धा एंव गौरव की भावना से भरा दिया। किन्तु हमारी पूर्व परंपराएं धीरे धीरे पतन होते जा रहे हैं। इनको पुनः कार्य रूप देना है। पर्यावरण संतुलन वृक्षों से ही होती है। अथर्ववेद इस विषय को उजागर करता हेै कि हरे भरे वनों से भरित पृथ्वी मंगलमय होता है।
‘‘दशकूप समावापी, दशवापी-समोह्रदः ।
दशह्रदसमः पुत्रः दशपुत्र समो द्रुमः ।।’’ 1
एक वृक्ष दश पुत्र का समान कार्य संभालता है। मत्स्य पुराण इसकी पृष्टि करती है। वृक्ष के महत्व को उजगर करते हुए कहा गया हेै कि दस कुँओं के बराबर एक बावड़ी है, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब हेै, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र हेै और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है। वृक्षों की महानता के संदर्भ में यह श्लोक गागर में सागर भर दिया। जब तक पर्वत और वनों से पृथ्वी वृक्षो रक्षति रक्षितः कहा जाता है। इसी विषय को समकालीन हिन्दी और तेलुगु कवि अपनी कविताओं के माध्यम से उजागर किये हैं। पेड़ हमें सब कुछ देते हैं।
‘‘पेड़ों ने सब को सब कुछ दिया
चिड़ियों को घोंसला
पशुओं को चारा
मुसाफिर को छाया
भूखों को फल
पुजारी को फूल
वैद्य को दवा
घर को दरवाजे, छत , खिड़कियाँ,
नेता अफसरों को कुर्सियाॅं
बदले में इन सबने पेड़ों केा
अब तक क्या दिया ।’’ 2
एक तेलुगु कवि से लिखित यह गीत तेलंगाना सरकार ‘तेलंगाना को हरित हारम्’ नाम से प्रारंभ किया। अपने गीत के माध्यम से यह कहते हैं कि मै पेड़ हूँ। मानव के अस्तित्व को प्राण देनेवाली माँ हूँ मेैं। धूप और बारिश दोनों से मैं छतरी बनकर रक्षा करती हूॅं। पशु-पक्षियों की भूख मिटाती हूँ। अनावश्यक प्रदूषण को अपने पेट में छुपाती हूँ। आप सब को प्रकृति की गोद में सुगंध भरित वायु को देती हूँ।
‘‘चेट्टु चेट्टम्मनु नेनु चेट्टुनु नेनु रा
मनिषि मनुगडकु प्राणम् पोसे अम्मनु नेनुरा
मी अम्मनु नेनुरा
एंड वानकु गोडुगुनु नेनै मीतोटे वुंटा
गोड्डु गोदेल आकलि तीर्च नीडै कासुंटा
अक्केर लेनि कालुष्यान्नि कडुपुलोन दास्ता
प्रकृति ओडिलो चक्कनि वासन परिमलालु वीस्ता’’ 3
वृक्षों की महानता के बारे में बताते हुए आशुतोष कुमार झा आशु ने ‘तब क्या होगा’ शीर्षक कविता में पेड़ के महत्व को उजागर किया है। यह कविता तुलसी दास जी की प्रसिद्ध दोहा ‘‘तुलसी संत सुअंब तरू फूलि फलहिं परहेतइतते ये पाहन हनत उतते वे फल देत’’ तथा रहीम के प्रसिद्ध दोहा ‘‘ तरूवर फल नहिं खात है, सरवर पियहिं न पान,कह रहीम परकाज हित संपति संचहि सुजान’’ की स्मृति दिलाती हेै।
‘‘बड़ा  होकर कितनों को
उसने फल चखाया
तपती दुपहरी में कितनों ने
उसकी सघन छााया में
आश्रय पाया, विश्राम पाया
वह यही भी नहीं जानता । ’’ 4
जीवन के लक्ष्य के बारे में पेड क्या कहता है। प्रतिफल की आशा न करके फल दो कहती है। वह न चल सकती है फिर भी अच्छी चाल सिखाती है। वह प्रमाण नहीं करती हेै फिर भी वर देती हेै। धूप में वह रहती है लेकिन सबको छाया देती है। बारिश में वह भीगती हेै लेकिन छत बनकर तुमको छाया देती हे। वह अफसरों के सामने न सिर झुकाती हेै, अनाथ को नहीं भगााती है। सब को एक ही रीति में आदर करती हेै। बंदर आकर डाल हिलाए या कोई पत्थर से मारे फिर भी वह अध पके फलों को अपनी तरफ से तोफा बनाकर देती है।
जीवित लक्ष्यान्नि गूर्चि चेट्टु एमंटुंदि
प्रतिफलमु अशिांपक
फलमु लीय मंटुंदि
नडवलेदु गाानि मंचि नडवडि चूपिस्तुंदि
वाग्दानाल चेयकुंडा वरालु कुरिपिस्तुंदि
एंडलोन तानुंडि नीड नीकु इस्तुंदि
वानलोन तानु तडिसि गोडुगु नीकु पडुतुंदि
अधिकारिक तलवंचदु अनादलनु पोम्मनदु
अंदरिनी ओके रीतिलो आदरिंचि चूस्तुंदि
कोति कोम्मलूपिना तुंटरि राल्लु विसिरिना
पंडी पंडनि कायलु बहुमतिगाा इस्तुंदि 5
धरती पर हरियाली की आवश्यकता एवं उसकी महानता को उजागर करते हुए कवि कहते हैं कि धरती की हरियाली हमें खुशी लाती है। इससे जीवन में आनंद भर जाता है। यह धरती हरा रहेगा तो हमारा मन भी उल्लासपूर्ण रहेगा। इसलिए हमेशा धरती को हरा-भरा रखना चाहिए। हमें प्रदूषण को रोकना चाहिए ।
‘‘प्रदूषण में कमी, ला देती हेै हरियाली
धरती को शीतल छाया, देती है हरियाली
नयन-सुख का हर्ष लिए, होती है हरियाली
इसलिए धरती पर रहने दो हरियाली ।’’6
वृक्षों को काटते रहने के कारण पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है और प्राकृतिक सौंदर्य कुठारघात हो रहा हेै। सृष्टि में अनेक दुर्लभ प्राणियाॅं लुप्त होती चली जा रही हैं नदियों की दिशा बदल रही है। अनेक औषध वनस्पतियाॅं आज उपलब्ध नहीं हो रहे हेैं। राजेंद्र राजन पेड़ की कटाई के प्रति बपनी चिंता प्रकट करते हुए कहते हेैं कि जब मैं पेड़ को काटते हुए देखता हूँ तो उसके भीतर के हरी चीख मुझे सुनाई देती है। पेडों को काटते समय उसकी जो पीड़ा हेै उसे अपने शब्द चित्रों के द्वारा कवि राजेंद्रराजन हमारे आँखों के सामने सजीव रूप में प्रस्तुत करते हैं ।
‘‘लेकिन आज
जब मेेैंने एक जवान पेड़ को काटते देखा
तो मैंने अपने भीतर सुनी
एक हरी भरी चीख’’ 7
यही भावना एंड्लूरि सुधाकर की कविता में भी मिलती हेै। कटा हुआ वृक्ष माने मेरी माँ का वक्षस्थल जैसा है। मुझे लगता है कि वो कोई कुल्हाड़ी से मेरी माॅं के पैर काट रहा है। ऋषि लोग वृक्षों के नीचे बैठ तपस्या करते थे। लेकिन ये दुष्ट वहाँ खड़े होकर मूत्र विसर्जन कर रहे हैं। वो तपस्या करने वाले ऋषि अब नहीं है। इसलिए वृक्ष माता अपनी डालियों से कहती है कि थोड़े दिन उन पत्तों के पीछे ही छिप जाओ। नहीं तो फल पकने के बाद पत्थर से मारते ही हैं।
‘‘नरिकिन वृक्ष मंटे
अदि ना तल्लि वक्षमे
वाडेवडो
गोड्डलितो
अड्डंगा ना तल्लि काल्लु नरूकुतुन्नाडु
ऋषुलु चेट्ल किंद तपस्सु चेस्तारू
दर्मार्गुलु वाटिकिंदे ओकटि पोस्तारू
इपुडु ऋषुलु लेरू
चेट्टु तल्लि
तन कोम्मलतो इला अंदि
अम्मलारा
कोंतकालम् आकुलमाटुने उंडंडि
पल्लुगाा मारिते
एलागु राति देब्बलु तप्पवु’’ 8
डाॅ. मेहता नगेंद्र सिंह का कविता संग्रह ‘पेड़ की चिन्ता‘ , पेड़ के प्रति कवि की चिन्ता मुक्त छन्दों में वर्णित है। डाॅ. मेहता ने वृक्ष की महत्ता को आत्मसात् किया है इन्होंने वृक्ष को मानवीकरण रूप दिया हैं। वृक्ष इनका मित्र है और इसके साथ भाव-सहचर्य का अनुभव किया है। ‘बरगद का दर्द‘ कविता इसका ज्वलंत प्रमाण है।
‘‘मूक पड़ा बूढ़ा बरगद
दुख-दर्द से
पीड़ित रहता है हरक्षण
इसलिए कि
हाथी-उॅूंट के सौदागर आते हैं
और इसकी साखें, काट ले जाते हैं
और रक्त बहा जाते हैं ।’’ 9
एक राजा था उसको पेड से चिढ़ था । उसका विचार ही अलग था । पेडों से वह चिढ़ता था । इसलिए वह पेडों़ का निषेध करते हुए एक शासन को जारी रखा । पौधों को निकाल दिया । पेडों को काट दिया ।
‘‘अनगनगा ओक राजु
आयन मनस्तत्वम् वेरू
चेट्लंटे अतनिकि चीदरिंपु
चिगुल्लंटे कंटिकिंपु
चेट््लनु निषेधिस्तुन्नाननि
चेइंचाडु चट्टम्
चिगुल्लनु पेरिकिंचाडु
चेट्लनु नरिकिंचाडु’’ 10
मेहता जी की मान्यता है कि आजकल शहरों में ऐसी स्थिति है कि वहाॅं न कोई असली हवा मिलती है न दवा। कवि की संवेदना और सहानुभूति के स्वर छोटी-छोटी क्षणिकाओं में फूट पड़े हैं, जिनसे कवि की आंतरिक पीड़ा व्यक्त होती है। जाग्रत अवस्था में ही नहीं, स्वप्नावस्था में भी कवि पर्यावरण की चिन्ता में ही रहते हैं। नींद में भी उसे चेैन नहीं मिलता। इस पीड़ा को कौन समझेगा, जो कवि के निम्नांकित शब्दों में व्यंजित है। ‘एक सपना यह भी’ कविता में कवि यों कहते हेैं
एक सपना देखा
कि सारा जंगल/चूल्हे में समा रहा है
कुछ मानव-हस्त,पंखा बना हेै
कुल्हाडी लिये
और नेपथ्य से
रह रहकर
एक ही आवाज, आ रही होती है
कि, ‘हरीतिमा का हत्यारा कोैन ?’ 11
विकास के बारे में मनुष्य पर्यावरण से छेडछाड कर रहा है । उसका संतुलन बिगाड रहा हेेै, वनों की रक्षा करने के बजाय वह उनका विनाश कर रहा हेै, अवैध रूप से वृक्षों को काटकर वन संपदा को लूट रहा है, इसके परिणाम स्वरूप प्राकृतिक विपदाएॅं घटित हो रही हेैं । कवइत्री कविता वाचक्नवी ने धरती की इस पीडा एवं वेदना को अपनी कविता में इस तरह उकेरा है ।
‘‘मेरे हृदय की कोमलता को
अपने क्रूर हाथों से
बेधकर
ऊंची अट्टालिकाओं का निर्माण किया
उखाड़ कर प्राणवाही पेड़-पोैधे
बो दिये धुंआं उगलते कल-कारखाने
उत्पादन के सामान सजाए ’’ 12
एक पोैधे को तुम बोओगे तो वही दस हजार का काम हेै। इससे सारा पर्यावरण विकसित होगा। जब तक वृक्ष जीवित है तब भी आदमी केलिए उपयोग है। मृत्यु के बाद भी वह दुनिया की भलाई करता हेै। वह मरकर भी खाना बनाने के लिए इंधन बनेगा।
‘मोकाक ओकिटि चालु
नुव्वु नाटिते पदिवेलु
बागु पडुनु परिसरालु
चेट्टुगा निलुचुनु तरालु’’
जीवमुन्नपुडे काक चच्चिन पिदपनु
जगति केंतमु मेल्सेय चाव वलयु
ब्रतिक वृक्षमु, नीडयु फलमुलिच्चु
चच्चि वंटकै चेरकुनु समकूर्चु’’
वृक्षारोपण और वृक्ष संरक्षण हमारा दयित्व है। पर्यावरण प्रदूषण से संबंधित समस्या पर चेतावनी देते हुए वृक्षों के संरक्षण का महत्व बताते हुए कवि वृक्ष के माध्यम से कहलाते हैं कि मुझे कुछ नहीं चाहिए बस प्यार और संरक्षण चाहिए।
‘मैं वृक्ष हूँ
मैं ही तुझे, शुद्ध वायु देता हूँ
जीने की खातिर, लम्बी आयु देता हूँ
मुझ वृक्ष से
तुम्हें और क्या चाहिए?
मुझे तो
सिर्फ तुम्हारा प्यार और संरक्षण चाहिए’ 13
हिन्दी और तेलुगु के समकालीन कवि अत्यंत संवेदन शील हेैं। अपनी कविताओं के माध्यम से जनता में चेतना जागृत कराने का सफल प्रयास कर रहे हैं। वे इस संस्कृति को भावी पीढ़ी तक ले जाने के प्रयास में हेैं।  हम को भी इस पर ध्यान देना चाहिए। इनकी कामना हेै कि कविता के माध्यम से सहृदय पाठक के हृदय में वृक्ष के प्रति संवेदना की भावना जाग्रत हो जाये। वृक्ष हमको पुत्र-सुख की अनुभूति देती है। परिवार के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण हमारा दायित्व है।  यह केवल एक व्यक्ति के द्वारा पूर्ति होनेवाला कार्य नहीं। यह सीमित कार्य नहीं है। इसकी सीमा अत्यंत विस्तृत हेै। आजकल जनता को प्रेरणा प्रदान करनेवाले सार्थक साहित्यकार की अत्यंत आवश्यकता है।  इक्कीसवीं शती की स्थितियों के प्रति इनका जो संदेश है वह अविस्मरणीय है।
References:
1.अथर्ववेद
2.अशोक सिंह अपनी पेड कविता में
3.youtube channel
4.काव्यम्: मार्च-अप्रैल 2007 पृ 76
5-सेमिनार में प्रस्तावित कविता
6- डाॅ. मेहता नगेंद्र सिंह ‘बेलपत्र’ कविता संग्रह में
7.राजेंद्र राजन की कविता
8-एंड्लूरि सुधाकर की कविता
9-डाॅ. मेहता नगेंद्र सिंह का कविता संग्रह ‘पेड़ की चिन्ता’
11.एक सपना यह भी’ डाॅ. मेहता नगेंद्र सिंह
12. कविता वाचक्नवी
13. डाॅ.मेहता नगेंद्र सिंह का कविता संग्रह ‘पेड़ की चिन्ता’
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