TEJASVI ASTITVA
MULTI-LINGUAL MULTI-DISCIPLINARY RESEARCH JOURNAL
ISSN NO. 2581-9070 ONLINE

नारी शोषण के प्रति समकालीन हिन्दी कवि -Dr. सुधा कर्री

Dr.Karri Sudha, Sr. Assistant Professor , Dept. of Hindi,

Visakha Govt. Degree College for Women,Visakhapatnam,  

Andhrapradesh, India.

                    युगयुगों से नारी का शोषण होता जा रहा है। पुरूष प्रधान समाज में कठपुतली सी जी रही है आज के इस वैज्ञानिक युग में भी इसकी स्थिति में बदलाव नहीं है जितनी वैज्ञानिकता की प्रगति हो रही है उसके ऊपर अत्याचारों की संख्या बढ़ती जा रही है साथसाथ आज की नारी का दायित्व बढ गया है उसे गृहस्थी संभालनी है, बच्चों की देखभाल करनी है, पति के आने पर रमणी बनकर रिझाना है, और बाहर जाकर कमाना का भी है तथl घर बाहर के अत्याचारों को सहना है। इन सभी को दृष्टि में रखकर समस्याओं को कई समकालीन हिन्दी कवि उजागर किये हैं। ‘‘वह आज भी मूक है उसके साथ आज भी पशुवत् व्यवहार हो रहा है, सामूहिक बलात्कार की वह शिकार हो रही है, उसकी हत्याऐं हो रही हैं, उसे सरेआम नंगा घुमाया जा रहा है, किन्तु उसकी कहीं सुनवाई नहीं होती पुलिस और प्रशासक रक्षक के बजाय भक्षक का रोल अदा करते हैं उषा धीमान और भंवरी देवी प्रकरण इसके ज्वलंत उदाहरण हैं कमजोर वर्ग की इन महिलाओं ने न्याय पाने के लिए पुलिस, प्रशासन , न्यायालय, राष्ट्रीय महिला आयोग, सभी के दरवाजें खटखटाये किन्तु कहीं से भी उन्हें न्याय नहीं मिला ‘‘ 1 नारी के इन सभी शोषण परिस्थितियों का समग्र आकलन समकालीन हिन्दी कवियों ने किया
             
नारी समस्याओं को केन्द्र बिंदु में रखकर लिखने वाले समकालीन हिन्दी कवियों में कैलाश वाजपेयी, मदन वात्सायन, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, दुश्यंत कुमार, पुरूषोत्तम सत्य प्रेमी, किशेरी लाल व्यासनीलकंठ‘‘, रघुवीर सहाय, भीम शरण सिंह, कुमारेंद्र, रजनी तिलक आदि का नाम महत्वपूर्ण रूप से उल्लेखनीय हैं पुरूष सत्तात्मक, इस समाज में नारी का शोषण किस प्रकार हो रहा है कवि इसका सजीव चित्र  प्रस्तुत करते हैं : ‘‘पुरूष के हाथ की/ कठपुतली बन गयी/ यातनाएँ उसके/देह का श्रृंगार हो गई/ और अश्रु की अविरल धारा/ उसका आत्मबल / हो गई कहीं दुर्गा/ कहीं सावित्री/ कहीं सरस्वती/ लक्ष्मी, लोपमुद्रा ‘‘ नारी की असहायता एवं उसके उत्पीडन से कवि हृदय उद्वेलित है नारी पर होनेवाले अत्याचारों को देखकर कवि हृदय द्रवित होने लगा नारी की विवशता पूर्ण जीवन को व्यक्त करते हुए कैलाश वाजपेयी जी कहते हैं ‘‘मेरा अस्तित्व किसी का आभारी है/ अजब लाचारी है/ नारी / उपस्थित है तब भी समस्या है /अनुपस्थित है तब भी समस्या समस्याओं से ग्रस्त नारी तथा नारी जीवन को समस्यात्मक बनानेवाले कारणों पर हिन्दी कवि प्रकाश डालते हैं नारी सुधार के प्रति अपना योगदान देनेवाले कवियों में रघुवीर सहाय, धूमिल, , लीलाधर जगूडी, चंद्रकान्त देवतले, आदि उल्लेखनीय हैं समस्याओं से ग्रस्त नारी पर प्रकाश डालते हुए ये कवि गरीबिन, वेश्या, मजदूरनी, अवैधमाता, परित्यक्ता, जैसे विभिन्न रूपों को उजागर किये हैं

            भारतमाता विदेशी कबंध हस्तों से विमुक्त होकर स्वतंत्र बन गयी लेकिन भारतीय नारी पुरूषाधिक्य समाज के सर्पपरिवेष्टन से विमुक्त नहीं हो पा रही है द्रौपदी की चीर हरण घटना को प्रतीकात्मक ढंग से प्रस्तुत करते हुए कवि किशोरी लाल व्यासनीलकंठका कहना है कि देश के लिए स्वतंत्रता की प्राप्ति हुई, लेकिन उस स्वतंत्र देश में नारी के लिए स्वतंत्रता नहीं है इस स्वतंत्र देश की स्त्री का लज्जापहरण प्रतिक्षण हो रहा है इस देश में अनेक दुस्सासन हैं द्वापर में तो द्रौपदी की रक्षा करने के लिए श्री कृष्ण थे लेकिन कलियुग में नारी की रक्षा करनेवाले एक भी कृष्ण नहीं है ‘‘द्रौपदीसी पर्त दर पर्त,/ नंगी होने लगी है :/और उसे बचाने को कोई कृष्ण/ कहीं नजर नहीं आता “3 नारी पुरुष के अत्याचारों को सहती हुई उसकी वासना का भार ढोती रही है मूक पशु की भांति वह अपना जीवन बिता रही है यह आज की नहीं है युगयुगों की परंपरा है ‘‘हर युग में, हर काल में/ हर हाल में, फिसती रही है तू/ पुरुष के अत्याचारों की चक्की में/ होती रही है शिकार/ उसकी वासना का, भावना का/ ढोती रही है बोझ,/ उसकी हर इच्छाओं का/ मूक पशु की भॉंति/ धर्म और मर्यादा के नाम पर / कब तक रहेगी तू/गृहस्वामिनी धृवस्वामिनी/ जंग की कहानी ? ” 4 तितली जैसे स्वतंत्र विहार करनेवाले नारी जीवन को भूखे जालिम पुरुष खा लेना कवि को हिला दिया उनकी स्वतंत्रता का हरण किया जा रहा है ‘‘छलक गया/ तालाब मेरी ऑंखों का/तितली सी उड.ती/किसी जिंदगी को/ वक्त भूखा जालिम/ जब नोंचनोंच खा गया “5 नारी के प्रति किये गये अत्याचारों का वर्णन करते हुए पुरुष की निर्दयता और नारी की दयनीयता का हृदय विदारक चित्र हमारे सम्मुख रखते हुए कहते हैं  
         
नारी एक ओर अशिक्षित होकर एक प्रकार की समस्याओं को झेल रही है तो दूसरी ओर शिक्षित होकर भी घरबाहर दोनों ओर प्रताडनाओं को सह रही है यह समकालीन युग की ज्वलंत समस्या है शिक्षित नारी पुरुष के समान काम कर रही है पर घर के उत्तरदायित्व से मुक्त नहीं रही है उसे दोनों कार्य पूर्ण रूप से संभालना पडता है बच्चों का लालन पालन करना, उनकी पढ़ाई इन सभी जिम्मेदारियों से वह थक जा रही है ‘‘नौकरी या घर/ कहॉं है उसका व्यक्तित्व/ भ्रमित हो गयी है वह/थकित हो गयी है वह/ क्या कहीं है भी ” 7 सुबह से शाम तक घर बाहर दोनों कार्यों को संभालने में ही उसका समय बीत रहा। ऐसीस्थिति में वह अपने बारे में सोच नही पा रही है।
             
इस प्रकार समकालीन हिन्दी कविता में नारी शोषण का यथार्थ अंकन हुआ है देश के लिए स्वतंत्रता की प्राप्ति होने पर भी नारी के लिए स्वतंत्रता नहीं मिली स्वतंत्र होकर भी वह परतंत्र है स्वातंत्रयोत्तर कवियों ने नारी की इस दयनीय स्थिति के प्रति अपनी संवेदना को समयसमय पर व्यक्त किए हैं और नारी को अपने प्रति किए जानेवाले अन्यायों के प्रति आवाज उठाने के लिए उद्बोधित करते हैं इस युग में मिथक के सहारे जैसे द्रौपदी, अहल्या, शकुंतला, दमयंती, सीता, कुंती, षबरी आदि पौराणिक पात्रों के माध्यम से नारी शोषण को उजागर करने का प्रयास किया गया है

1. दलित वर्ग की महिलाओं का उत्थान : एक विश्लेषण , डॉ. कुसुम मेघवाल, आश्वस्त : जनवरीःमार्च, 2001 सं.तारा परमार ।
2. वर्षागाँठ , : कैलाश वाजपेयी, पृष्ट संख्या : 56
3. 15 अगस्त 1980 के उपलक्ष्य में : अंध्ररे उजाले के दीप : किशोरीलाल व्यास नीलकंठ : पृष्ट संख्या : 6
4. तोडनी होंगी बेडियॉं : भीमषरण सिंह : दलित साहित्य 99, संपादक जय प्रकाश कर्दम : पृष्ट संख्या : 288
5. क्षणिकाएं : मूक माटी की मुखरता : पुरुषोत्तम सत्यप्रेमी : पृष्ट संख्या : 61
6,लकडबग्धा हॅंस रहा है : चन्द्रकान्त देवतले : पृष्ट संख्या : 11

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