नैतिक मूल्य और जातिगत मानसिकता पर कोविड-१९ का प्रभाव
डॉ.आर.श्रीदेवी
lecturer in Hindi
डी.एन.आर गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज
पालकोल, वेस्ट गोदावरी
आज पूरे विश्व को अपनी क्रूरता का शिकार बनाने वाली बीमारी करोना को सर्वप्रथम चीन में दिसम्बर माह में देखा गया था। आज यह पूरे विश्व में एक महामारी के रूप में त्राही-त्राही मचा रही है। कोविड-१९ का फैलाव करोना नामक वायरस से होता है। प्रोटीन से बना यह वायरस आसानी से नष्ट नहीं होता है। इसने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है। पूरे विश्व में लगभग सभी देशों में लॉकडाउन घोषित कर दिया गया है। सभी देशों, राष्ट्रों, शहरों, गांवों और मोहल्लों का संपर्क लगभग कट सा गया है। इस बीमारी का न कोई इलाज है, न कोई दवा और न कोई वैक्सीन। सबसे बड़ी त्रासदी की बात यह है कि इस वायरस की प्रकृति की संपूर्ण जानकारी किसी भी वैज्ञानिक के पास अब तक नहीं है। यह आसानी से संक्रमित होने वाली भयंकर महामारी है।
आज पूरा विश्व इसकी चपेट में आ चुका है। इसने पूरी दुनिया के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक व्यवस्था को नष्ट कर दिया है। मुख्य रूप से आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था इससे सबसे अधिक प्रभावित हुई हैं। बिना दवाई की इस बीमारी से लड़ने का एकमात्र तरीका सामाजिक दूरी बनाये रखना है। ऐसा माना जा रहा है कि इस दूरी से संक्रमण कम होगा। कहने का अर्थ यह है कि नेटवर्क को ब्रेक करके वायरस के फैलाव को रोकना है।
वर्तमान समय में व्यक्ति अपनी नैतिकता खोता जा रहा है। सामाजिक दूरी उनके दिलों की दूरी बनती जा रही है। व्यक्ति से व्यक्ति मिलने से कतराने लगा है। प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखने लगा है। हाल ही में एक शहर में एक आक्रमणकारी देखते-ही-देखते एक बूढ़ी औरत को मार देता है। आसपास के लोग कोई फोटो खिंचता है, तो कोई झूठी सहानुभूति पूर्ण बातें करता है, पर उसे बचाने की कोशिश कोई नहीं करता है। इस समय रहीम का एक दोहा याद आता है-
‘‘कहि रहीम संपत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीत,
विपत्ति कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत ।।’’
प्रस्तुत पंक्तियों में रहीम ने कहा है कि विपत्ति के समय ही मित्र की पहचान होती है। आज इंसान अपनी इंसानियत खोने लगा है। कुछ दिनों पहले ही एक आर्थोपिटिशिन की मौत कोरोना से हुई थी। उसके घर वाले सारे क्वारेटेन में थे। उस डॉक्टर का अंतिम संस्कार करने उसके बंधू-मित्र कोई नहीं आये, बल्कि एक अन्य डॉक्टर उसकी लाश को लेकर तीन श्मशान घाटों पर गया, लोगों ने वहां उसकी लाश को दफनाने नहीं दिया। अंत में किसी एक घाट पर बड़ी मुश्किल से उसका दाह संस्कार हुआ। मौत के डर ने इंसान को हैवान बना दिया है। वह स्वार्थी होता जा रहा है।
आज तक जो राम-रहीम भाई-भाई थे, वे आज पुन: शत्रु बन रहे हैं। मरकज से आये मुसलमानों के कारण भले ही केस क्यों न बढ़े हो, पर इसके लिए वे कैसे जिम्मेदार होंगे। सभी मुसलमानों को आज शंका की दृष्टि से देखा जा रहा है। कोरोना के कारण व्यक्ति शंकालु हो गया है। उसमें पुन: जाति-भेद की भावना पनपने लगी है।
जो देश शिखर वार्ता के मेजों पर संधि एवं मैत्री की बात करते थे, शांति वार्ता और पारस्परिक समझौता करते थे, एक दूसरे से मिलने और प्रेम भाव रखने का आश्वासन देते थे, आज वही देश एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं। मूल समस्या को समझे बिना हर कोई एक दूसरे के खिलाफ खड़ा है। हमारे बड़े-बूढों ने कहा है कि संकट के समय में ही हमें अधिक विवेक से काम लेना चाहिए। आज पुन: अपने आचरण को संक्रमित नहीं संस्कृत करना है। आज नैतिकता और धर्म का पुन: पाठ पढ़ने की जरूरत है। पूरे विश्व को एकजुट होकर इस समस्या को सुलझाना है। समाज में सुख-शांति की स्थापना हेतु सहनशीलता एवं सेवा भाव की आवश्यकता है। मानव जीवन की सार्थकता इसी में है कि वह लोगों की सेवा करे।
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