TEJASVI ASTITVA
MULTI-LINGUAL MULTI-DISCIPLINARY RESEARCH JOURNAL
ISSN NO. 2581-9070 ONLINE

पर्यावरण प्रदूषण समकालीन हिन्दी और तेलुगु कविता-एक अध्ययन

 From the           

 

Editors’ Desk

     डाॅ. कर्रि सुधा
Dr.Karri Sudha

पर्यावरण प्रदूषण

समकालीन हिंदी और तेलुगु कविता – एक अध्ययन 

डाॅ. कर्रि सुधा
Dr.Karri Sudha

Editor, Tejasvi Astitva
Asstt. Professor,
Head – Dept. of Hindi,
Visakha Govt. Degree & PG College for Women,
Vishakhapatnam, Andhrapradesh
Mobile: 9100443611

विज्ञान की जिज्ञासा एवं अतिविलासितापूर्ण जीवन की लालसा के भागदौड़ में मानव अपने एवं अपने परिवार के अस्तित्व के साथ-साथ पर्यावरण को भी खतरे में डाल रहा है। पर्यावरण की गति में अवरोध लगाकर प्रदूषित वातावरण का सृजन कर रहा है। समकालीन हिन्दी और तेलुगु कवि यह पहचान रखते हैें कि मनुष्य की प्रगति में पर्यावरण का अपना योगदान रहता है । जब तक मानव पर्यावरण के अनुकूल अपनी जीवनी चलाता है तब तक पर्यावरण शांत रहता है । परंतु मानव यदि पर्यावरण की गति में अवरोध डालेगा तो उसको उसका फल अनिवार्य रूप से भोगना पड़ेगा। विश्व के पर्यावरण समारोहों तथा भारतीय पर्यावरण आंदोलनों से प्रभावित होकर समकालीन हिन्दी और तेलुगु कवि अनेक कविताएँ लिख रहे हैं। इस संदर्भ में धर्मवीर भारती के अंधायुग की पंक्तियाॅं स्मरणीय होने के साथ साथ एक गंभीर चिन्तन का विषय है। उनका मानना है कि विज्ञान के प्रभाव से जो शासत्रज्ञ अण्वस्त्रों का प्रयोग कर रहे हैं उनके दुष्परिणामों का अंदाजा नहीं कर सकते हेैं। इससे सृष्टि के समस्त जीव राशि के नष्ट होने का खतरा बढ़ जाता है।

‘‘यदि यह लक्ष्य सिद्ध हुआ
ओ । नर पशु
तो आगे आनेवाली सदियों तक
पृथ्वी पर रसमय वनस्पति नहीं होगी
शिशु होंगे पेैदा विकलांग
और कुष्ठग्रस्त
सारी मानव जाति बोैनी ही बौनी हो जाएगी ’’

तेलुगु के कवि इसी ओर चेतावनी देते हैं कि अमृत को उगानेवाले अणु बीजों से विष पूरित मृत्यु समस्याओं को उगानेवाले हे शास्त्रज्ञ अणु बम का प्रयोगा करके इतिहास को अंधकार में मत डालो । अणु के द्वारा पर्यावरण को घायल मत करो ।‘‘अमृतम् पंडिंचे अणुबीजाल नुंडि, विष पूरित मृत्यु समस्यलनु मोलिपिस्तुन्ना शास्त्रज्ञुलारा, परमाणुवुलनु रगल्चि चरितनु पोगचूरनीकंडि’’। डाॅ. सी. नारायण रेड्डी इसी विषय पर चेतावनी देते हैं कि अणु रक्षण के अद्भुत पद्रर्शन से लोगों का विनाश हो जाएगा । सृष्टि के मूल बीज मानव को जिस विश्वंभरा ने अपने गोद में प्राणों से भी ज्यादा पाला है उसको नष्ट मत करो ।

अनुरक्षण चेसिन अद्भुत प्रदर्शन लो
जन विद्वंसानिकि दारितीयोद्धु
सृष्टि परिणितिकि मूलबीजम् मनिषि
आ बीजान्नि प्राणम्ला दाचुकुन्ना

विश्वंभरा ओडिनि पेल्चेयोद्धुपर्यावरण संतुलन को विषतुल्य बनाकर प्रदूषित कर दिया है । संतुलन से भरे पर्यावरण की सुंदरता को जला कर रख दिया है । पर्यावरण प्रदूषण की वजह से मानव की आयु प्रमाण घटती जा रही है । इस संकट का दुष्प्रभाव केवल मानव जाति तक ही सीमित नहीं रहा । वह समस्त धरती के जीवराशि के संत्रस्त के रूप में अवतरित हुआ है । प्रदूषण की व्याप्ति मानवीय कार्यकालापों से ही होती है ।

‘‘समुद्र ओैर नदियों को तू
कचरे से प्रदूषित करता
कीटनाश औद्योगिक कचरों
से तू इनको विषाक्त करता ।
कचरे से परिपूर्ण हुआ जल
जब समुद्र में जाता है
समुद्र से वाष्पित होकर वह
दूषित मेघ बनाता हेै ।
दूषित मेघ बरसते भू पर
धारा विषाक्त हो जाती हेै
वनस्पतियाॅं भी दूषित होकर
रोग उत्पन्न कराती है ।
धरती और सन्नाटा – योगीश्वर शास्त्री पृ 82

सागर का प्रदूषण किस तरह हो रहा है इसका वर्णन करते हुए एक तेलुगु कवि इस तरह कहते हैं। तेल, कीटविनाशक, उद्योग आदि से जो व्यर्थ निकलते हैं उनको सागर में छोड़ने की वज़ह से सागर को भीषण क्षति पहॅुंच रही है।

‘‘आइलु चेत कोंत, क्रिमिसंहारुुलु मंदुलु चेत कोंत दु
र्वायुवु चेत कोंत, तटपर्ति परिश्रम लेल्ल व्यर्थमुल्
पेयुट चेत कोंत, सदमुल गोनि तेच्चिन चेत्तनंतटिन
मोयुट चेत कोंत पेनुमुप्पु घटिल्ले नंबुराशिकिन’’

अनावश्यक मात्रा में उपलब्ध कार्बन-डाइ-ऑक्साइड, सल्फर-डाइ-ऑक्साइड तथा नाइट्रिक ऑक्साइड जल में मिलकर बरसात के रूप में हो जाय तो हम उसे तेजाबी वर्षा कहते हैं। औद्योगिकरण एवं वाहनों से निकलने वाले धुंएँ के कारण इसकी संभावना अधिक बढ़ जाती है। इसके कई दुष्परिणाम होते हेैं। विश्व के सभी प्राणियों के अस्तित्व को यह प्रश्नार्थक बना देता है। हमने धुंआं भेजकर नीलगगन को प्रदूषित किया है। मलय पवन को आम्लों की बारिश बना दिया है।

‘‘धुॅआ भेजकर नील गगन को
किये प्रदूषित मलय पवन को
आम्लों की बारिश करवा कर
जला दिये हम सभी चमन को ’’
बेलपत्र – डॅा मेहता नागेंद्र सिंह

प्रदूषण का सृजन करने वाले काले मेघ तेजाबी वर्षा बनकर बारिश कर रहे हेैं। इससे सारी नदियाँ अपने सूखे ओंठों के क्रन्दन रुदन से त्राहि-त्राहि मचा रहे हैं। जिस डाल पर बैठा है उसी को काट रहा है, मानव की इस मूर्खतापूर्ण व्यवहार को देख सृष्टि में ओज़ोन की परत/लेयर विकराल हॅंसी से ऐसे मानव की खिल्ली उड़ाते प्रतीत हो रहे है।

कालुष्यम् सृष्टिन्चे कारूमब्बुलु
आम्ल वर्षालै कुरूस्तुन्टे
पेदवुलु तडि आरि नदुलु दाहम् दाहम् अनि
नालुकनु चूपिस्तुन्नाइ
मानवुडु तानु कूर्चुन्न कोम्मनु ताने नरूक्कुंटुंटे
ओज़ोन पोर पगलबडि नव्वुकुंटोंदि

धर्मवीर शर्मा की कविता ‘दूषित प्र्यावरण’ में बताते हैं कि आज यमुना नदी सूखी पड़ी है। गंदे कींचड़ से भरी नदी नाला बन गयी है। हमें इसकी ओर ध्यान देना है। इनको प्रदूषण मुक्त करना है।

‘‘मगर आज सूखी पड़ी यमुना मेैया,
सड़े नाले-नदियों को कीच और गारा।’’

प्रदूषण से व्यक्ति बुरी तरह से प्रभावित होता है । हवा में धुंएँ का मिल जाना और व्यक्ति की साॅंस अटकने की बात अब आम बन चुकी है। कवि कहते है कि गंगा नदी के तट पर एक धुंएँ का पेड़ दिखाई दे रहा है। आकाश में वह धुंआं पेड़ की भांति उग रहा है।

‘‘धुंएँ के पेड़ की तरह उगी है
उस पार वहाॅं एक चिमनी
पेड़ों की हरित पट्टी के पीछे
पेड़ बनी
खड़ी है एक चिमनी
धुंआं उगलती
गंगा के इस पार
तट पर बैठे
अक्षितिज देखते
देखते हैं हम
पेड़ों के तनों में
छुपी नहीं दिखती है’’
धुंएँ की पेड़ की तरह उगी हैः ज्ञानेंद्रपति, गंगाातट

पर्यावरण प्रदूषण की वजह से सारा जीवन विषतुल्य बनता जा रहा है। ‘‘मरुगुतुन्ना विष वायुवु, तरूगुतुन्ना आयुवु,परिसराल कालुष्यम्,नरनराल विषतुल्यम्’’। जमीन प्रदूषित होता जा रहा है। जल प्रदूषित होता जा रहा है। हवा भी प्रदूषित होता जा रहा है। सोने के फल उगाने वाली ज़मीन अब साल में एक फसल भी नहीं दे रही। इन मशीनों ने हमें दोबारा कुली बनाकर रख दिया है। इन कारखानों की चिमनियों इन कल-कारखानों से निरंतर उठने वाले खतरनाक धुंएँ से व सायरन की कर्ण-भेदी आवाज़ से हम लगातार खतरनाक बिमारियों के शिकार होते जा रहे हैं। ‘वातावरणम्’ कविता में कवि कहते हैं।

नोल कलुषितम्.. नीरू कलुषितम्… गालि कलुषितम्
फाक्टरी मनुषुलतो मा मनसुलु कलुषितम्
पंडिंदि बंगारम् कादु तंडरी !
ओक पंटा पंडक मा कडुपुलो मट्टि पंडिंदि
यंत्रालु मम्मल्नि तिरिगि कूलील्नि चेसाइ
पोग गोट्टम् वूरिनि वूदेसाका
इक्कडेव्वरू रेैतुल्लेरू तंडी
मा उदयाल्लो कोडि कूतलु मायमै
मा पसि कूनल बेदरगोट्टे सैरन् शब्दालु
मा पल्ले चित्रंलो पच्च रंगु मायमै
दट्टम् गा परचुकुन्ना नल्ल नल्लनि पोग मेघालु
इवाल मा श्वास भारम् विंत विंत रोगालतो मा शरीरालु भारम्

इन सब को दृष्टि में रखकर धरती और सन्नाट काव्य में योगीश्वर शासत्री जी अपनी कविता में कहते हैें कि अब तो कोई चांदनी में जी सकेगा और न चांदनी को पी सकेगा। क्योंकि वह कारखानों की चिमनियों से निकलते धुंएँ से धुंधला गया है।

अब न कोई चांदनी में जी सकेगा
अब न कोई चांदनी को पी सकेगाा
चांदनी का रूप काला हो गया है
चिमनियों की धुये से धुधला गया है
चांद भी मुद्दम हुआ से दीखता है
इस प्रदूषण ने हमारे चाॅंद को धुंधला किया है।

हिन्दी और तेलुगु कविता में पर्यावरण प्रदूषण से उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है। पर्यावरण की महत्ता एवं प्रदूषण से उत्पन्न होनेवाली समस्याओं व उसके दुष्परिणामों से अवगत कराने हेतु इन्हें जन-जन के हृदय की गहराइयों तक पहॅुचाने की अनेकों बार अनेकों कवियों ने अथक प्रयास किया।

जन-जन को पर्यावरण प्रदूषण से उत्पन्न होनेवाली समस्याओं के प्रति जागरूक करना ही इनका एकमात्र लक्ष्य है।

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