TEJASVI ASTITVA
MULTI-LINGUAL MULTI-DISCIPLINARY RESEARCH JOURNAL
ISSN NO. 2581-9070 ONLINE

उच्च शिक्षा-आज- डॉ . सुधा कर्री

उच्च शिक्षा-आज

Dr.Karri Sudha,

Sr. Assistant Professor, Department of Hindi,

Visakha Govt. Degree College for Women,

Visakhapatnam,Andhra Pradesh, India.

यह तथ्य है कि हम सभी को स्वीकार करना चाहिए, दुनिया में प्रत्येक कार्य के विभिन्न पक्ष हैं। हमें हमेशा स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, चाहे कुछ भी हो, प्रकृति सबसे अच्छा उदाहरण है, जो बदलाव को प्राथमिकता देती है। ‘पुरातनता का यह निर्मोक/सहन करती न प्रकृति पल एक/नित्य नूतनता का आनंद/किये हें परिवर्तन में टेक।/‘1 उच्च शिक्षा में इतना विप्लवात्मक परितवर्तन आये हैं शायद उसका अंदाज नहीं कर सकते हैं। बदलते परिवेश में हमको भी बदलना चाहिए। तकनीकी एवं पारम्परिक शिक्षा के सम्मेलन से ही आज की शिक्षा व्यवस्था के फल हम पूर्णतः पा सकते हैं। आजकल पारंपरिक शिक्षा के साथ-साथ ई-लर्निंग का भी महत्व बढता जा रहा है । छात्रों को रोचक ढंग से सिखाने में तथा उनको विषय समझाने में तकनीकी पद्धति ज्यादा उपयुक्त होता है। आजकल मुक्त विद्या की मॉग ज्यादा बढ गया है । इस संदर्भ में उन्हें उपलब्ध ऑनलाइन शिक्षण संसाधनों और ई-लर्निंग सामग्री का बेहतर ज्ञान होना चाहिए। डिजिटल एवं वर्चुअल क्लासरूम, लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम-एलएमएस, वाट्साप इत्यादि के सदुपयोग से प्रभावात्मक ढ़ग से शिक्षा को प्राप्त कर सकते हैं । सेमिनार्स, कार्यशालाए, ग्रूप डिस्कशन्स आदि के द्वारा विद्यार्थी में कम्यूनिकेशन स्किल्स बढ़ा सकते हें ।ज्यादातर लोग अभी भी पारंपरिक विश्वविद्यालयों को ज्ञान प्राप्त करने  केलिए अच्छा तरीका मानते हैं ।, लेकिन ऑनलाइन शिक्षण एक बेहतरीन विकल्प साबित होता है।  ऑन लाइन कोर्सेस से समय का सदुपयोग होता है कई  कोर्सेस मुफ्त में भी मिलते हैं । छात्रों को अपने समय में और विशेष रूप से मुफ्त में अध्ययन करने का मौका मिलता है। 

साथ-साथ आजकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी महत्व बढ़ता जा रहा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक ऐसी मशीन की बुद्धिमत्ता है, जो किसी भी बौद्धिक कार्य को सफलतापूर्वक कर सकती है, जो मनुष्य कर सकता है। प्रौद्योगिकी में शिक्षकों और छात्रों के बीच संबंधों को बढ़ाने की क्षमता है। उच्च शिक्षा की दुनिया में आज सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के उपयोग के कारण कई सुविधाएं मिल रही हैं। दूरस्थ शिक्षा, इंटरनेट, शिक्षक और स्वयं छात्रों के लिए विभिन्न अनुप्रयोगों की मदद से, वे शैक्षिक प्रौद्योगिकी का लाभ देखते हैं। संभावित लाभ की सीमा व्यावहारिक रूप से गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में व्याप्त है जिसमें ज्ञान और संचार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह बेहतर शिक्षण परिणाम और सीखने की प्रक्रियाओं से लेकर बेहतर छात्र परिणाम, छात्रों की बढ़ती व्यस्तता और शिक्षकों और अभिभावकों के साथ सहज संवाद से जुड़ा है। ज्ञान और कौशल के बीच महत्वपूर्ण अंतर है जो छात्र संस्थान में सीखते हैं। 

 यूजीसी उच्च गुणवत्ता और उच्च शैक्षिक सुधार की आयोजन प्रणाली है और अभिनव विचारों के सुधार के लिए हमेशा रचनात्मक तरीके लागू करता है। इसने भारत के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार सीबीसीएस को लागू किया। यूजीसी का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक छात्र को बहु आयामी और बहु कुशल का ज्ञान बनाने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना है। सीबीसीएस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य और उद्देश्य शिक्षार्थियों को एक अवसर प्रदान करना है। शिक्षार्थी के लिए अधिक वैकल्पिक चयन करने के लिए सुविधा प्रदान करना, शिक्षा व्यावहारिक और यथार्थवादी होगी, बहुआयामी कौशल विकास, रोजगार के अवसरों में सुधार, पाठ्यक्रम के बीच में संस्थान को बदलने का विकल्प इत्यादि सुविधओं को विद्यार्थी को देना इसका प्रधान उद्धेश्य है।  सीबीसीएस (चॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम) सभी उच्च शैक्षणिक संस्थानों में एक प्रयोग है । लेकिन लोगों की राय है कि अंडर ग्रैजुएट स्तर पर इसे लागू करना बहुत मुश्किल है। यह पोस्ट ग्रेजुएट लेवल के लिए उपयोगी है। भले ही इसमें कुछ बाधाएं हों लेकिन मुझे लगता है कि उच्च शिक्षा के विकास में यह सबसे अच्छी प्रणाली है। यह उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की उच्च शिक्षा नीति है। 2009 में, यूजीसी ने केंद्रीय, राज्य और डीम्ड विश्वविद्यालयों को उच्च शिक्षा संस्थानों में अकादमिक और प्रशासनिक सुधारों के लिए ज्ञानम समिति की सिफारिशों के आधार पर एक कार्य योजना प्रस्तुत की थी। सीबीसीएस यूजीसी द्वारा शुरू किया गया एक छात्र केंद्रित कार्यक्रम है जो छात्रों को वैकल्पिक पाठ्यक्रम के लिए मूल विभाग या विश्वविद्यालय के किसी अन्य विभाग से या यहां तक कि अन्य विश्वविद्यालयों और भारत या विदेशों में मान्यता प्राप्त अनुसंधान संस्थानों से भी क्रेडिट प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। इस प्रणाली में छात्रों को विभागों और संस्थानों में ऐच्छिक का चयन करने का मौका मिलता है। अंतर-संस्थान क्रेडिट हस्तांतरण प्रदान करके, पसंद आधारित क्रेडिट प्रणाली अंतर-अनुशासनात्मक सीखने को प्रोत्साहित करती है।

बहुत लोगों की मान्यता यह है कि यह अमेरिकी शिक्षा प्रणाली से प्रभावित नीति है, जो भारतीय शिक्षा के लिए उपयुक्त नहीं है। लेकिन भूमंडलीकृत युग में हमें विरोधियों का मुकाबला करने के लिए तैयार रहना चाहिए। आकांक्षी को अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने और कौशल विकसित करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। इस प्रणाली को छात्र को बहुआयामी और बहु प्रतिभाशाली में तैयार किया जाता है। हम सभी हीरे के मूल्य को जानते हैं और हीरे की तरह बनने के लिए तैयार हैं और हीरे को बनाने की प्रक्रिया का अधिग्रहण करने के लिए तैयार हैं। उच्च शिक्षा में अभिनव परिवर्तन और सुधार के रास्ते में है। मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती। स्मृति ईरानी का कहना है कि यह प्रणाली छात्र को भारत में कहीं भी नौकरी दिलाने में मदद करती है।

सीबीसीएस काउंसिल के अनुसार वर्तमान भारतीय छात्र संख्यात्मक अंकन प्रणाली अपनी प्रमुखता खो रही है और ग्रेडिंग की ओर बढ़ रही है। क्योंकि ग्रेडिंग छात्र का अधिक यथार्थवादी आकलन है जो संख्यात्मक अंकन प्रणाली की तुलना में है। ग्रेडिंग में शब्द ’लाइफ फेलिंग’ शब्द का उपयोग कम से कम किया जाता है। छात्र के शैक्षणिक वर्ष में सिद्धांत और व्यावहारिक पाठ्यक्रमों के लिए समान वजन आयु के साथ निरंतर अंतर-सेमेस्टर और सेमेस्टर-अंत मूल्यांकन शामिल होगा। जब मूल्यांकन किए गए पेपर छात्रों को वापस दिए जाते हैं और उनके साथ संकाय द्वारा चर्चा की जा सकती है। इससे छात्रों को अपनी कमियों को सुधारने और समझने का अवसर मिलता है। लेकिन सिस्टम का दुरुपयोग करने का मौका है। अकादमिक ऑडिट के लिए एक सही अकादमिक ऑडिट कमेटी होनी चाहिए, जिसमें सिलेबस की समीक्षा, आकलन के तरीके, इंट्रा सेमेस्टर के मूल्यांकन के रिकॉर्ड और सेमेस्टर के अंतिम मूल्यांकन शामिल हों।

अंततः यह कह सकते हैं कि शिक्षा देश के महत्वपूर्ण विकासशील कारक हे। समय तथा समाज के बदलते परिवेश के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था में भी परिवर्तन होना चाहिए। विशेष रूप से, उच्च शिक्षा की प्रणालियों का रूप धारण वर्तमान समय की चुनौतियों का सामना करने वाला होना चाहिए। भारत में उच्च शिक्षा का अर्वाचीन इतिहास है। नलंदा, तक्षशिला विश्व विद्यालय इसके ज्वलंत प्रमाण है, भारत में आज कल उच्च शिक्षा संस्थाओं की कमी दिखती है। भारतीय शिक्षा व्यवस्था को विश्व के उन्नत श्रेणी शिक्षण संस्थाओं के समकक्ष खडा करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, उच्च शिक्षा के अध्ययन के लिए हमारे छात्रों की गतिशीलता विदेशों से आने वाले छात्रों की संख्या से बहुत अधिक है। इस पृष्ठभूमि में, भारतीय उच्च शिक्षा के वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए, उच्च शिक्षा प्रणाली में प्रतिमान बदलाव की आवश्यकता है। शिक्षा में आने वाले नए सुधारों को उच्च शिक्षा में उपरोक्त चिंताओं को दूर करना चाहिए और सूचनाओं को वर्गीकृत और पुनर्व्यवस्थित करने के नए तरीकों को शामिल करना चाहिए, नई और अलग-अलग दिशाओं से समस्याओं को कैसे देखना चाहिए और आखिर में नए भविष्य के समाज को पूरा करने के लिए कैसे लाया जाए। हमारे छात्रां को वैश्विक स्पर्धा में सामना करनेवाला शिक्षण देना चाहिए।
संदर्भः
1. कामायनी, जयंशंकर प्रसाद
2. google search
3. यूजीसी वेबसाइट

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