TEJASVI ASTITVA
MULTI-LINGUAL MULTI-DISCIPLINARY RESEARCH JOURNAL
ISSN NO. 2581-9070 ONLINE

संस्कृति पर कोरोना का प्रभाव -B.ARUNDHATI

                  संस्कृति पर कोरोना का प्रभाव 

B.ARUNDHATI (Asst.Prof.in Hindi)

Gyatri Vidya Parishad

College for Degree & P.G Courses (A)

कोरोना (कोविड-19)से उत्त्पन्न परिस्थियों के सकारात्मक पहलू

कोरोना (कोविड-19) इक्कीसवी सदी का यह सबसे भयानक लाइलाज संक्रमण बीमारी है जो आज पूरे विश्व को अपने चपेट में ले लिया है। कोरोना वायरस का मानव जाति पर अब तक का यह सबसे गंभीर खतरा  है। वैश्वीकरण के दौर में एक ओर भारत तकनीकि विकास की ओर कदम बढ़ा रहा है, वहीं करोना महामारी का प्रभाव जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है । इस महामारी के प्रभाव को रोकने के क्रम में जो उपाय किए जा रहें हैं उनसे जीवन से जुड़े कई क्षेत्रों में सुधार और इसके अच्छे परिणाम देखने को मिल रहें है जैसे –सामाजिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण, शैक्षिक कार्यक्रमों आदि में।

भारत जैसे घनी आबादी वाले देश के लिए तो यह महामारी सबसे बड़ी चुनौती बन कर सामने आई । सीमित सुविधाओं और असुविधाओं के बीच रहकर इस संक्रामण बीमारी से निपटना तथा स्थिति को काबू में लाना कोई आसान काम नहीं था । कोरोनावायरस हमारे लिए नया नहीं है, लेकिन कोविड-19 नया है। इस सदी में यह इस तरह का तीसरा है और इसका चरित्र भारतमें पहले आक्रमण किए हुये हैजा, प्लेग, चेचक, मलेरिया, कालाजार एवं बेरीबेरी, डेंगू, स्पेनिश फ्लू वायरस के परिवार जैसा नहीं है। यह वायरस जानवरों और इंसान दोनों को संक्रमित कर सकता है। कोरोनावायरस सांस संबंधी इंफेक्शन से जुड़ा हुआ है। यह हर उम्र के इन्सानों को अपना शिकंजे में ले सकता है । इसके लक्षणों में नाक का बहना, खांसी, गले में खराश और बुखार शामिल हैं।

हमारी संस्कृति भारतीय संस्कृति है। संस्कृति पर भारतीयता का नाम जुड़ने का अर्थ ही ये है कि हमारी संस्कृति एक दूसरे को जोड़ती है । मानव संबद्धों को मजबूत करती है । परिवार जैसे सीमित दायरे को भारतीयता और वसुदैवकुटुंब के असीम दायरे से जोड़ती है। वैसे तो यह युग तकनीकि क्रांति का युग भी है। जिसका प्रभाव भहुत कुछ हमारी समाज,संस्कृति,और जीवन शैली पर सकारात्मक और नकारात्मक रूप से पड़ता दिखाई देता है ।फिर भी हम अपनी संस्कृति के कुछ आचार नियमों को आज भी कायम रखे हुये है, और कुछ आचार नियमो को आधुनिकता के नाम पर भूलते जा रहें है । यह संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे को फैलता है,इसीलिए इसे रोकना बेहद जरूरी था इसके लिए एकमात्र मूलमंत्र था, व्यक्तिगत दूरी बनाए रखना अर्थात  व्यक्ति और व्यक्ति के बीच  एक मीटर का फासला बनाना ,वो फिर चाहे अपने सगे संबन्धी ही क्यो न हो । इस महामारी कड़ी को तोड़ने के उद्देश्य से ही जनता कर्फ्यू,लोक डाउन, जैसे कदम उठाए गए।इस लॉकडाउन से संस्कृति पर अपत्यक्ष रूप से अच्छे प्रभाव  भी पड़े है । जिसका जिक्र आगे किया गया है । प्रधान मंत्री ,केंद्र सरकार ,राज्य सरकार प्रसशासन के अधिकारी ,डॉक्टरों फिल्म कलाकारों द्वारा जनता को एवं स्वयं के लिए घरों मे निर्बंध करने का निर्देश दिया जा रहा है  ।

परिवार और संस्कृति:  पच्चीस तीस साल पहले कि बात करें तो हप पातें हैं कि परिवार में  संयुक्त परिवार का बड़ा महत्व हुआ करता था । एक छत के नीचे एक ही परिवार के दस पंद्रह सदस्य हंसी खुशी रह लेते थे, मिल बैठ कर काम करना ,एक साथ बैठ कर खाना खाना ।नोक झोंक के साथ सुलह करलेना ,संकट हो या खुशी का मौका, एक दूसरे का सहारा बन जाते  थे । उच्च ,शिक्षा, नौकरी कुछ लोग मजदूरी के लिए उद्योग धंधा के कारण परिवार, गाँव, शहरों को छोड़ दूर अंजान शहरों में ,विदेशों मे बसने के लिए जा चुके थे वे लोग  फिर से वापस परिवार से जुडने के लिए लालायित हो रहे हैं ।, कुछ लोग पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर देश-विदेशों मे बिखर गए थे,वे सभी आज अपनी स्थायी निवास की ओर लौट रहें हैं,परिवार से जुड़ना चाह रहें हैं । कारण कुछ भी हो इतना तो स्पस्ट है की लोगो में सकारात्मक सोच पैदा हुई की कोविड 19 का प्रभाव मानव सम्बन्धों को मजबूत कर रहा है।

घर परिवार फिर से साथ मिलकर रह रहें हैं । स्वास्थ्य की दृष्टि से दूरियाँ बरतते हुये भी दूर नहीं हैं। जो लोक डाउन के चलते फंसे हैं वे मोबाइल,इंटरनेट,आदि संचार माध्यमों का उपयोग करते हुए सुख-दुख बाँट लेते हैं। अपनी पहुँच के अन्दर जरूरतमंदों की सेवा कर रहें हैं। प्रवासी मजदूरों ,गरीबों,अनाथों को खाना खिला रहें हैं। उनके प्रति सद्भावना प्रकट कर रहें हैं। शादी-व्याह के अनावश्यक खर्चों को कम कर रहें हैं। कुछ समझदार वधू वर कोरोना से सावधानी बरतते हुए लोगों को जागरूक कर रहें हैं।

खाने – पीने के मामले में भी बदलाव देखा जा रहा है लोग पारंपरिक भोजन की ओर रुचि दिखा रहें है ।बड़ों सहित बच्चो को भी घर का बना खाना खाने की आदत डाली जा रही है । लोग अधिक से अधिक शाकाहारी भोजन पसंद करने लगे हैं । हाल ही में परंपरागत त्योहारों का आयोजन सभी अपने अपनेघरों में रहकर सादगी से मनाया । हमारी संस्कृति मे हाथ जोड़कर नमस्कार करने के संस्कार को सारे विश्व के लोग अपना रहें हैं । शिक्षा के क्षेत्र मे बदलाव लाया जा रहा है। लगभग सभी राज्यो मे होनेवाली अनेक परीक्षाये कोरोना की वजह से रद्द कर दी गयी है, इसका असर विद्यार्थियो पर बुरा न पड़े इसके लिए ऑन लाइन क्लासेस ली जा रही हैं, जो आगे भी जारी रहेंगी। घर बैठे लोग अपनी प्रतिभा को साहित्यकार, कवि, संगीतकर, चित्रकार, कलाकार आदि के रूप मे उभार रहें हैं। अपनी अभिव्यति से पीड़ितों के प्रति,सफाई कर्मियों के प्रति सद्भावना व्यक्त कर रहें हैं।

मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारे आदि धार्मिक क्षेत्र बंद पड़े हैं, फिर भी आस्था कम नहीं हुई। लोग संयम से  घर बैठे ही भगवान को याद कर रहें है,।हाल ही में रामनवमी,गुड्फ्राइडे,राज्यों के नववर्ष जैसे त्योहारों को लोग अपने अपने घरों में इसी तरह मनालिए। क्योंकि कहीं भी भीड़ या समूह जुटना संक्रामण होने का खतरा बन गया था ।यह सकारात्मक सोच का ही परिणाम है । इसके अलावा सरकार द्वारा लागू की गयी स्वच्छता अभियान मे सफाई पर तो ध्यान दिया गया ,पर कोरोना से तो व्यक्तिगत स्वच्छता के साथ साथ सफाई कर्मियों के त्याग और सेवा भाव को पहचान मिली । उनके प्रति सद्भावना हमारी संस्कृति का अंग है ।

पर्यावरण पर भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है । लोग घरों में ही रहने के कारण सड़कों पर वाहनों का चलना लगभग कम हो गया जिसके परिणाम वायु प्रदूषण कम हो गया है । नदियाँ भारतीय संस्कृति के गहने हैं,  हमारी जीव नदियाँ है । भारतीय रीति रिवाज के अनुसार कई संस्कार गत कार्यक्रम करने के समय इन नदियों में फूल पत्ते राख़ और व्यर्थ पदार्थ डाल दिये जाते है। लेकिन अब लोगों के सकारात्मक सोच के कारण नदियो का जल निर्मल हो गया है ।

निष्कर्ष : संस्कृति पर कोरोना महामारी का दुष्प्रभाव नहीं पड़ने देना है बल्कि इस महामारी के खिलाफ लड़ाई जारी रखते हुये स्वयं को ,परिवार को ,समाज को  संस्कृति को और मानवीय संबद्धों को मजबूत करने की दिशा में यथा संभव प्रयत्न करना है

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