विद्या व्यवस्था पर कोविड-19 का प्रभाव
डॉ हरिराम प्रसाद पसुपुलेटी
कोरोना वायरस बीमारी (कोविड-19) एक संक्रामक बीमारी है जो हाल ही में पता चले एक नए वायरस की वजह से होती है. कोविड-19 की चपेट में आए ज़्यादातर लोगों को हल्के से लेकर मध्यम लक्षण अनुभव होंगे और वे बिना किसी खास इलाज के बीमारी से उबर जाते हैं. कोरोना वायरस ( Corona virus )एक जानलेवा महामारी बन चुका है। ये वायरस चीन के वुहान शहर से निकल कर पूरी दुनिया में फैल चुका है। कोरोना वायरस ( COVID-19 ) ने चीन, अमेरिका, इटली, दक्षिण कोरिया, ईरान, ब्रिटेन, जापान आदि देशों में कहर बरपा रखा है। दुनिया भर में कोरोना वायरस ( Corona virus Outbreak ) की वजह से अब तक हजारों की जान जा चुकी है, जबकि लाखों लोग संक्रमित हैं और लगातार तेजी के साथ बढ़ती ही जा रही है। लिहाजा, इसकी चपेट में आकर मरने वालों की बड़ी संख्या को देखते हुए WHO ने कोरोना वायरस को महामारी घोषित कर दिया हैं। अब इस वायरस के खतरे से दुनिया को बचाने के लिए कई देशों के वैज्ञानिक कोरोना वायरस के वैक्सीन बनाने में जुटे हुए है। कोरोना वायरस संक्रमण का संक्रमित व्यक्ति के छूने, छींकने या खांसने से फैल सकता है। हल्का बुखार, खांसी, भारीपन आदि इस वायरस के लक्षण है। यदि इस तरह का कोई भी लक्षण आप में नजर आ रहा हो तो तुरंत डाक्टर की सलाह लें या नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में जाएं।
कोविड-19 बीमारी वाला वायरस उन बूंदों से फैलता है जो किसी संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छिंकने या सांस लेने से पैदा होती हैं. ये बूंदें बहुत भारी होती हैं, इसलिए ज़्यादा देर तक हवा में नहीं रह पाती हैं और तुरंत ही फ़र्श या सतह पर गिर जाती हैं. अगर आप किसी ऐसी व्यक्ति के बहुत नज़दीक हैं जो कोविड-19 से पीड़ित है, तो सांस लेने पर आप भी संक्रमित हो सकते हैं. अगर आप किसी संक्रमित सतह को छूते हैं और उसके बाद आंखें, नाक या मुंह छूते हैं, तो आप उससे भी संक्रमित हो सकते हैं.
कोरोना के कारण भारत ही नहीं पूरे विश्व की अर्ध एवं विद्या व्यवस्ता संकट में पडगया है। कोरोना के कारण लॉक डाउन में हर पाठशाला , कालेज एवं विश्व विद्यालय अचानक बंद कियेगये। इस प्रकार कोरोना की आकस्मिक आक्रमण के कारण विद्यार्धी एवं उन के माँ – बाप भी चकित होगये। अब शिक्षा ऑनलाइन में हो रहे है। मूल्यांकन भी ऑनलाइन में कर रहे है। ऑनलाइन मूलयांकन ट्रेल एंड एरर एवं अनिश्चिति का संकेत दे रहे है। अब सम्प्रदायक मूल्यांकन की अन्य विधाएँ सुप्तावस्था में चले गए। यह केवल स्वल्पकालिक भी नहीं है वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनिज़शन सूचनाओं के अनुसार हमे दो – तीन साल तक ऑनलाइन शिक्षा एवं मूल्यांकन को अपनाना चाहिये। तदनुरूप विद्यार्धी एवं शिक्षक गण तैयार होना चाहिए और नए शिक्षा प्रणाली को अपना कर अपने सम्प्रदायक अध्ययन एवं अध्यापन पद्धतियों से हट कर नवीकरण होना चाहिए।
यह सिक्खे की एक पहलू है। दूसरी ओर भारतीय सम्प्रदायक एवं परंपरागत आचार – व्यवहार के नींव पर नए सोच से ये लाइलाज बीमारी से बचकर रहना ही एक मात्र उपाय है। प्रतिदिन बाहर जाते वक्त फेस मास्क को धारण करना , सैनिटाइज़र से हाथ धोना तथा भौतिक दूर जैसे तीन अस्त्र – सस्थ्रों कोरोना से लड़ना चाहिये। भारतीय परंपरा में अगर नवजात शिशु का जन्म हुआ तो उस परिवार या वंश को १०-१४ दिन तक संगरोध करने का आदत है , इतना ही नहीं कोई व्यक्ति का मृत्यु हुआ तो उन्हें मैला हुआ समझ कर १०-१४ दिन तक होम क्वारेंटाइन में रख ने का आदत भी है। परिवार में नवजात शिशु का जन्म एवं मृत्य जैसे समय में विषाणु एवं बैक्टीरियाओं को अधिक मात्रा में फ़ैलाने की संभावना है। इन से बच कर रहने के लिए हमारे ऋषि इस प्रकार का शाश्त्रीय मार्ग दिखाया है यह आज भी प्रासंगिक है। इस के कारण हमारी परम्परागत अचार व्यवहार को श्रद्धा से निश्ठा पूर्वक आचरण करना चाहिए।