TEJASVI ASTITVA
MULTI-LINGUAL MULTI-DISCIPLINARY RESEARCH JOURNAL
ISSN NO. 2581-9070 ONLINE

मूल्य-हनन के प्रति उपन्यासकार मृणाल पाण्डे की चिंता

बी.हेमलता

शोधार्थिनी, नेशनल फेलोशिप, यू.जी.सी, नई दिल्ली,

हिन्दी विभाग,आंध्र विश्वविद्यालय, विशाखापट्टणम, आंध्र प्रदेश-530003, मोः 9032261701

ई-मेलः[email protected]

 

मृणाल पाण्डे के छः उपन्यास प्रकाशित हुए- ‘विरूद्ध’, ‘पटरंगपुर पुराण’, ‘देवी’, ‘रास्तों पर भटकते हुए’, ‘हमको दियो परदेस’ और ‘अपनी गवाही’। इन उपन्यासों में मानव-अधिकारों से वंचित नारी की समस्याओं को चित्रित किया गया है। ‘विरूद्ध’ उपन्यास में समाज तथा परिवार के प्रति नारी की बदलती मानसिकता तथा उसके जीवन की विसंगतियों का चित्रण हुआ है। पटरंगपुर पुराण में पहाड़ी जीवन के साथ-साथ पुरे देश के सामाजिक और राजनीतिक परिवेशगत बदलाव के नारी-जीवन पर प्रभाव को चित्रित किया गया है। ‘देवी’ उपन्यास में लेखिका ने स्त्रियों के विभिन्न रूपों को समझने और नारी-मन के गोपनीय अंशों पर प्रकाश डालने की चेष्टा की है। ‘रास्तों पर भटकते हुए’ उपन्यास में मृणाल पाण्डे ने आधुनिक उपभोक्तावादी समाज में मानवीय संबंधों का विघटन, सर्वव्यापी भ्रष्टाचार, धन और सत्ता की दौड़ में मानवीय मूल्यों का ह्ा्रस तथा नारी के प्रति पुरुषों की हीन दृष्टि का वर्णन किया है। ‘अपनी गवाही’ उपन्यास में लेखिका ने पत्रकारिता के क्षेत्र में आधुनिक युग की सच्चाईयों को उजागर करते हुए मूल्य-च्युति के नेपथ्य में महिला पत्रकारों के दमन एवं शोषण का अंकन किया है। एक पत्रकार होने के कारण मृणाल पाण्डे को युगीन परिवेश को बहुत निकट से देखने-परखने के कई अवसर प्राप्त हुए। ग्रामीण एवं शहरीय समाज में नारी और उपेक्षित लोगों की समस्याओं से अवगत होकर लेखिका ने अपने उपन्यासों में नारी तथा गरीबों के प्रति सामाजिक सोच में बदलाव लाने की जोरदार मांग की है। पारिवारिक संबंध-विघटन के नेपथ्य में नारी के जीवन में संघर्ष को इन्होंने चित्रित किया है। पति-पत्नी के संबंधों में तनाव के मूल में अर्थाभाव को दर्शाकर सामान्य लोगों के जीवन पर अभाव के प्रभाव को चित्रित किया गया है। उपन्यासकार मृणाल पाण्डे ने मूल्य संदर्भोंचित कथा-प्रसंगो के माध्यम से सामाजिक समस्याओं की अभिव्यक्ति की है। मृणाल पाण्डे के उपन्यासों में वर्ग भेद,छुआछूत, दहेज प्रथा, बाल विवाह, अनमेल विवाह, विधवा समस्या, सती प्रथा, शिक्षित-अशिक्षित देशी-विदेशी एवं यौन रोग जैसी अनेक सामाजिक समस्याओं को देखा जा सकता है । श्रमिकों, शोषितों और गरीबों के प्रति लेखिका ने अपनी संवेदना प्रकट की है। गरीब एवं निम्न वर्ग के लोगों का शोषण करने वाले पात्रों का चित्रण कर लेखिका ने शोषकों की दूषित वृत्तियों का जोरदार खण्डन किया है। ‘रास्तों पर भटकते हुए’ उपन्यास में एक डाॅक्टर साहब जैसे उच्च वर्ग के लोग निम्न वर्ग के लोगों को अपनी जरूरत का साधन मात्र समझते हैं। वे गरीबों की मजबूरी का फायदा उठाना बहुत ही अच्छी तरह जानते है तथा इसे बिल्कुल भी गलत नहीं मानतें उपन्यास में एक स्थान पर “एक गरीब बच्चें से उसका अतिरिक्त गुर्दा या त्वचा का टुकड़ा ले लेना या इसकी हड्डी से कुछेक सी मज्जा खींच लेना और उसके परिवार को बदले में भरपूर मुआवज़ा दिलवा देना कितने को पुण्य का काम हैं। हमारे देश में पैसे वाले अमीर लोग अपने शरीर को ज्यादा खाकर तबाह कर लेते हैं, तो बिना पैसे वाले लोग भूख और कुपोषण से सुखा कर। तो जिसके पास जो अतिरिक्त है, उसे एक से लेकर दूसरे को देना-लेना, यह तो जीव जगत में समता कायम करना हुआ।इससे स्पष्ट है कि अमीर लोग गरीबों का शोषण करते हैं तथा गरीब भी मजबूर होकर इसका विरोध करने की उपेक्षा उनका ही साथ देते हैं।

मानव-अधिकारों से वंचित दलित वर्ग के लोगों के प्रति मृणाल पाण्डे ने अपनी सहानुभूति प्रकट की है। ‘पटरंगपुर पुराण’ उपन्यास में अपने पैसे के बल पर खूब दिखावा करने वाले उच्च वर्ग के लोगों के स्वभाव का अंकन करते हुए इन लोगों की संवेदनशून्यता के कारण हीनभावना के शिकार बनने वाले लोगों की व्यथा-कथा सुनाई गई है। ‘पटरंगपुर पुराण’ उपन्यास में गोपाल डिप्टी कलक्टर के बेटे का विवाह उच्च वर्ग की लड़की से तय होता है। लड़की के परिवार वाले लड़के वालों को खूब दान-दहेज देते हैं तथा लड़के वाले भी इस अवसर पर खूब पैसा बहा कर भोज का प्रबंध करते हैं। इससे पटरंगपुर पुराण के निम्न वर्ग के लोग स्वयं को बहुत हल्का महसूस करते हैं। आमा को भी बहुत बुरा लगता हैं उसका कहना है- प्रेम से देना ही तो चुपचाप अपनों को दे आओ…….खुल्लम खुल्ला दे के, दिखा के, गरीब गृहस्थों की पीठ पर लड़की जैसी मत तोड़ों। छुआछूत की प्रथा कई सदियों से भारतीय समाज के प्रचलन में थी। इस प्रथा के कारण निम्न जातियों के लोगों का दैहिक, आर्थिक और सामाजिक शोषण निरंतर हो रहा है। मृणाल पाण्डे ने वर्ण व्यवस्था के विरूद्ध अपने आक्रोश को व्यक्त किया है। ‘पटरंगपुर पुराण’ उपन्यास में बहुओं को तो सबसे अधिक छुआछूत को ध्यान रखना पड़ता था। इन नियमों को निभाना उनके लिए परम आवृतय था, इसके लिए चाहे उन्हें कितनी भी परेशानी क्यों न उठाना पड़े, इस संबंध में आमा बताती है छूआछात के मारे बड़े से बड़े खानदान में बहुएँ भी पकाने वाली हुई, बहुएँ ही नौले से पानी लाने वाली हुई। नौले भी कहाँ-कहाँ ठहरे तब ”इस प्रकार औरतों को छुआछूत के नियम निभाते हुए कई कष्ट उठाने पड़ते थे। इसी प्रकार दहेज प्रथा के कारण निम्न एवं मध्य वर्ग की स्त्रियों के अविवाहित रह जाने अथवा अनमेल विवाह के शिकार बन जाने की समस्या का चित्रण कर उपन्यासकार मृणाल पाण्डे ने मानवीय संवेदना की कमी को इस समस्या के कारक के रूप में बताया है। ‘पटरंगपुर पुराण’  नामक उपन्यास में दहेज विरोधी आमा ने पटरंगपुर निवासियों को दहेज न लेने को समझाते हुए कहा, “पहले बामनों में न तो मुँह खोल के ऐसा कुछ माँगा जाता था, न जो मिला उसे फैला के समाज में परचार करते थे, भले घरों के लोग। अभी-अभी अपनी तीयलों को ले के खुश हो रहे हो, अपनी लड़कियों के बखत सर पर हात रख के रोओगे करकें….”अविवाहित स्त्रियों विवाहित महिलाओं, परित्यकताओं और विधवाओं की समस्याओं का चित्रण करते हुए उपन्यासकार ने नारी को आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया और ग्रामी, अनपढ़,गरीब महिलाओं के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाले स्वास्थ्य-केन्द्रों के संचालकों की संवेदनशून्यता पर मृणाल पाण्डे ने अपने कई लेखों के माध्यम से प्रहार किया है। पुरूष-अहंकार से परिचारित वर्तमान व्यवस्था में शिक्षित महिलाओं और महिला पत्रकारों की दयनीय दशा का अंकन लेखिका ने ‘अपनी गवाही’ नामक उपन्यास में किया है। घर और बाहर दोनों तरह शोषण एवं प्रताड़न झेलने को विवश महिलाओं के प्रति उपन्यासकार मृणाल पाण्डे ने सहानुभूति प्रकट की है। समाज में उपेक्षित वर्ग के लोगों की स्थिति में सुधार लाने में लेखिका ने जोरदार मांग की है। नारी के प्रति समाज की संकुचित दृष्टि का खण्डन किया है। नारी को पुरुष-समान अधिकार दिलाने उसके व्यक्तित्व की गरिमा को पहचानने, उसके अस्तित्व को सुरक्षा प्रदान करने और उसकी समस्याओं को दूर करने की दिशा में कदम उठाने की भी इन्होंने मांग की है। नारी-शिक्षा-अभियान का लेखिका ने समर्थन किया है। गरीबों और शोषितों के प्रति अपनी संवेदना को प्रकट करते हुए लेखिका ने मानवता की कसौटी पर संबंधों का निर्वाह करने की अपील की है। मृणाल पाण्डे के सभी उपन्यासों में मूल्य-हनन के प्रति लेखिका की गहरी चिंता प्रकट हुई है।

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