TEJASVI ASTITVA
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ISSN NO. 2581-9070 ONLINE

पर्यावरण : भारतीय संस्कृति एवं साहित्य : डाॅ. कर्रि सुधा

पर्यावरण   : भारतीय संस्कृति एवं साहित्य

डाॅ. कर्रि सुधा

‘मा निषाद प्रतिष्ठा त्वमागमः शाश्वती समाः
यत्क्रौंच मिथुदेकमवधीः काम मोहितम्’ ।1

                              क्रौंचवध से उत्पन्न शोक आदिकवि वाल्मीकि के कण्ठ से श्लोक बनकर फूट निकला था, उपर्युक्त श्लोक पर्यावरण: भारतीय संस्कृति एवं साहित्य के अटूट संबंध का ज्वलंत प्रमाण है, । ‘पर्यावरण’ से प्रेरणा पाकर आदिकवि वाल्मिीकी ने आदिकाव्य का सृजन किया। स्पष्ट है कि गहरी अनुभूति एवं गहन मानवता ही पर्यावरण चेतना के मूल श्रोत हैं।

                                       वसुधैव कुटुंबकम, विश्वबंधुत्व की भावना, विश्व शांति ये सब भारतीय संस्कृति के नींव हैं । मानवता भारतीय संस्कृति में अंतर्निहित निगूढ़ तत्व है ।   हड़प्पा संस्कृति , वैदिक संस्कृति इसके प्रमाण है. मानवता की सीमा केवल मानव तक ही सीमित नहीं है । उससे परे सृष्टि के समस्त प्राणियों का मूलाधार पर्यावरण के प्रति दिखाने वाली आराधना है । यही आराधना पर्यावरण चेतना को जगाती है । पर्यावरण संरक्षण की ओर संकेत करती है । बौद्धिक दृष्टि से सबसे विकसित जीव है मानव । किन्तु पर्यावरण की कृपा से प्राप्त इस शरीर के सुख-भोग केलिए अपने स्वार्थ एवं बुद्धिबल से पर्यावरण के अस्तित्व को ही मिटा रहे हैं । जब तक पर्यावरण शांत रहेगा तब तक हम सुुखी ही रहेंगे । अगर इसकी गति में कोई रूकावट आ जाएगा तो प्रलय हो जाएगा । भारतीय संस्कृति इसकी पृष्टि करती है ।

                                   वैश्विक स्तर पर ‘पर्यावरण’ संकट एवं समाधान पर जोर से चर्चा हो रही है । ‘पर्यावरण’ का प्रयोग प्राकृतिक परिवेश से जुडा हुआ है । सूक्ष्म से सूक्ष्म अणु से लेकर चेतन एवं अचेतन वस्तुओं तक के बीच एक विशेष प्रकार का आपसी संबंध मौजूद है जिसके आधार पर पर्यावरण बनी रहती है । जीव और वस्तुओं जो जड़ हो या चेतन के परस्पर आश्रय पर ही पर्यावरण व्यवस्था निर्भर रहती है । इस व्यवस्था में जब कहीं कोई अवरोध या बाधा उपस्थित हो जाये, तो सारी व्यवस्था ही बिगडने लगती है ।

                             स्वार्थपूरित मानवीय शक्ति पर्यावरण के स्वरूप को इतना बदल दे रहा है कि इसका मूल रूप ही नहीं है । प्रदूषित पर्यावरण में जीना अत्यंत मुश्किल है । ऐसी संकट स्थिति में मनुष्य पर्यावरण की रक्षा करने में असफल होता जा रहा है । मानव अपने द्वारा किये गये गलत कार्यों से स्वयं असंतृप्त है । स्वार्थ भावना से मानव स्वयं विनाश के मार्ग को चुन रहा है । खेद की बात तो यह है वह जिस धरती पर जी रहा हेै, उसीका विनाश कर रहा है । वह जिस डाल पर बैठा हुआ हेै, और जिस पेड ने उसे आश्रय दिया है, उसी को वह काट रहा है । पर्यावरण की रक्षा हमारा दायित्व है । पर्यावरण से अलग होकर या कटकर प्रगति की दिशा में प्रयाण अनर्थ की ओर प्रयाण है । समय और समाज को रचनाकार अपनी रचनाओं के द्वारा यह चेतावनी देते हैं कि पर्यावरण के महत्व को अनदेखा करके प्राकृतिक संपादाओं को अन्धाधुन्ध शोषण हो जा रहा है उसका परिणाम भयानक होगा ।

                                       सहृदय सदा अपने परिवेश के संदर्भ में सचेत रहता है, गतिविधियों का सूक्ष्म निरीक्षण एवं परीक्षण करता है। समाज को यथार्थ स्थिति सूचित करता है। साहित्यकार इसी दिशा में थोडा आगे बढ़कर यथार्थ के साथ-साथ आदर्श को भी जोडकर अपनी लेखनी से चित्र रूप देता है। पर्यावरण के भारी विनाश से उत्पन्न पर्यावरण् असंतुलन और तज्जनित संकट से परिवेश के सूक्ष्म अध्येता साहित्यिक हृदय चिंतित हैं और इस व्यथाविद्ध भावदशा में उनके कण्ठ से जो अक्षर फूटे हैं वे अनायास काव्य भाषा में पंक्तिबद्ध हो गये हैं। ज्ञान की वृद्धि करके समाज में व्याप्त विषमताओं का तीखा प्रहार करते हुए समाज को सुधारने में आजीवन प्रयासरत अनेक सफल साहित्यकार हैं। ‘तुलसी दास‘ कृत ‘रामचरित मानस‘ का ‘किष्किंदकांड‘ इसकी पुष्टि करती है। मानव शरीर पंच तत्वों से भरा हुआ है ।

‘छिति जल पावक गगन समीरा ।
प्ंच तत्व से रचित अधम शरीरा । ‘2

                   भारतीय संस्कृति पर्यावरण और मनुष्य के बीच के आत्मीय संबंधों का उल्लेख करने में सक्षम है । प्राकृतिक संपत्ति के नष्ट होने से प्राणि जगत् को ही हानि होती है । वह मानव संसार से भी जुडी हुई हानि है । भारतीय संस्कृति मनुष्य के कुकर्मोें से विनाश के कगार खडी पृथ्वी को बचा सकने की आस्था व्यक्त करती है । इस पृथ्वी को संतुलन बनाये रखने में वन और वृक्षों की महत्ता की ओर दृष्टि कंद्रित करती है ।

संदर्भ ग्रंथ सूचीः

1. वाल्मिकी  रामायण
2.‘तुलसी दास‘ कृत ‘रामचरित मानस‘ का ‘किष्किंदकांड‘

 

Contact Address:

Dr.Karri Sudha,

Sr. Asst. professor,

Head of the Dept. of Hindi,

Visakha Governement Degree College for women,

Visakhapatnam, Andhra Pradesh,Bharat

 

             

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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